How can we overcome the tendency to be indecisive – Hindi?
Anwser Podcast
लिप्यंतरण- केशवगोपाल दास
प्रश्न- कुछ लोग निर्णय नहीं ले पाते हैं। निर्णय न ले पाने कि वृत्ति मन से आती है या बुद्धि से और इसका क्या हल है?
उत्तर- प्रकृति के तीन गुण होते हैं – सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। सतोगुण में पहले विचार होता है फिर कार्य, रजोगुण में पहले कार्य फिर विचार (पहले ही कुछ बोल दिया जाता है और बाद में विचार होता है कि ऐसे बोलना चाहिए था या नहीं), और तमोगुण में न विचार होता है न कार्य, केवल निष्क्रियता रहती है।
निर्णय न ले पाने वाली श्रेणी में या तो सतोगुणी अथवा तमोगुणी व्यक्ति होते हैं। सतोगुणी व्यक्ति अत्यधिक विचार करने के कारण और तमोगुणी व्यक्ति आलस्य के कारण निर्णय नहीं ले पाते हैं।
यहाँ पर महत्वपूर्ण है कि जो विचार मन में घूम रहे हैं उन्हें मन के बाहर लाया जाए। जिन विचारों के कारण हम निर्णय नहीं कर पा रहे हैं हमें चाहिए कि हम उन विचारों को कहीं डायरी इत्यादि में लिख लें। ये विचार हमारे मन के इतना पास होते हैं कि हम आमतौर पर इन्हें ठीक से नहीं देख पाते हैं। किन्तु इन्हें लिख लेने से हम इन्हें एक प्रकार से मन के बाहर ले आते हैं और इन विचारों पर हम तटस्थ भाव से विचार करने की स्थिति में आ जाते हैं। ऐसा भी कह सकते हैं कि जब हम इन विचारों को लिख लेते हैं तो यह वैसा ही है जैसे हमने अपने मन का एक फोटो निकाल कर बाहर अपनी कॉपी में चिपका लिया हो जिसे हम जब चाहें देख सकते हैं।
विचारों के लिखने के बाद अब हमें चाहिए कि हम उन विचारों को बीच-बीच में समय निकाल कर देखें और उनपर चिंतन करें। उन विचारों के अच्छे-बुरे पक्ष के बारे में सोचें तथा उन्हें भी एक जगह लिख लें। ऐसा करने के बाद हमें उस विषय पर निरंतर विचार नहीं करते रहना है अपितु समय-समय पर (जैसे सप्ताह में एक बार अथवा महीने में दो बार इत्यादि) ही उन विचारों का मूल्यांकन करना है। यदि बीच में कोई विचार और आ जाए तो उसे भी वहीं साथ में लिख दें। कुछ समय तक ऐसे करते रहें। आप देखेंगे कि ऐसा करने पर आप विचारों का गहराई से मूल्यांकन कर पाऐंगे। पाँच-छः महीने में आपको तस्वीर साफ-साफ नजर आने लगेगी और आप किसी निर्णय पर पहुँच पाऐंगे।
यहाँ एक उदाहरण दिया जा सकता है। मान लिजिए बॉस से परेशान होकर नौकरी छोड़ने का विचार मन में आ जाए। किन्तु साथ ही एक अन्य विचार भी आ जाए कि यदि नौकरी छोड़ दी तो कमाई बंद हो जाएगी। एक तरफ बॉस की परेशानियाँ और दूसरी तरफ कमाई खोने को डर – क्या निर्णय करें? इन दोनों विचारों के बारे में निरन्तर सोचते रहने की बजाय इन्हें लिख लें और समय-समय पर इनका मूल्यांकन करें।
विचारों को लिखने का एक लाभ यह भी है कि ऐसा करने पर वरिष्ठ भक्तों के सलाह मशवरा करना सरल हो जाता है। कई बार जब हम वरिष्ठ भक्तों से सलाह मशवरा करने जाते हैं तो अपने स्वयं के विचारों को ठीक से न समझने के कारण हम उन्हें अपनी स्थिति से सही-सही अवगत नहीं करा पाते हैं और उनका उचित मार्गदर्शन प्राप्त नहीं कर पाते हैं। विचारों को लिखने से हम उन्हें बेहतर समझ पाते हैं और वरिष्ठ भक्तों को बेहतर समझा सकते हैं।
इस प्रक्रिया को बार-बार करने पर – समय समय पर अपने विचारों को मूल्यांकर करना और वरिष्ठ भक्तों से सलाह मशवरा करना – आप समझ पाऐंगे कि फैसला कैसे करना चाहिए। हर व्यक्ति का मन और बुद्धि अलग-अलग प्रकार से कार्य करता है और यह उस व्यक्ति को सीखना होगा। किसी व्यक्ति को फैसला करने में कम समय लगता है तो किसी को अधिक। किन्तु एक-दो बार फैसला करने की प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह समझ में आने लगेगा कि यह प्रक्रिया कैसे कार्य करती है। थोड़े से अभ्यास से एक दिन आप भी अच्छे फैसले ले पाऐंगे।