If the intelligence and the Supersoul’s voice are the same, why do many intelligent people act sinfully – Hindi?
Anwser Podcast
लिप्यंतरण: केशवगोपाल दास
प्रश्न: यदि बुद्धि और परमात्मा की वाणी एक ही है, तो हम गलत कार्य क्यों करते हैं?
उत्तर: मैंने ऐसा नहीं कहा कि बुद्धि और परमात्मा की वाणी हमेशा एक ही होती है। जब हम भक्ति करके शुद्ध हो जाते हैं तब ही हमारी बुद्धि और परमात्मा की वाणी एक हो सकती है। हम एक उदाहरण के इसे समझने का प्रयास करेंगे।
आतंकवादियों को बम विस्फोट करने में बुद्धि का सहारा लेना पड़ता है। कैसे सुरक्षाबलों को चकमा देना है, कहाँ बम विस्फोट करना है इत्यादि ऐसे कई विषयों पर उन्हें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह बुद्धि भगवान् से नहीं आती, किन्तु यह उनके तमोगुण अथवा रजोगुण से आती है। हर बुद्धि की वाणी परमात्मा की वाणी नहीं होती है।
हम सबके जीवन में कुछ बातें अल्पकालिक होती हैं तथा कुछ दीर्घकालिक। अल्पकालिक बातों का निर्धारण मन द्वारा किन्तु दीर्घकालिक बातों का निर्धारण बुद्धि द्वारा होता है। मान लीजिए मुझे भूख लगी है, और उसे शान्त करने के लिए मैं तुरन्त ही कुछ खा लूँ। ऐसा भी सम्भव है कि मैं यह सोचूँ कि मैंने अभी कुछ देर पहले ही तो खाया था, तो क्यूँ न मैं तीन-चार घण्टे बाद ही कुछ खाउँ। तुरन्त खा लेने से मेरा हाजमा बिगड़ सकता है, मैं बीमार पड़ सकता हूँ। यहाँ तुरन्त खा लेने का भाव मन द्वारा तथा बाद में खा लेने का भाव बुद्धि द्वारा आया है। यह बुद्धि परमात्मा की या फिर साधारण बुद्धि की वाणी भी हो सकती है। बुद्धि की वाणी की पहचान यह है कि उसका प्रभाव दूरगामी होता है। इसके विपरीत मन की वाणी का प्रभाव तात्कालिक होता है।
हम जितना शुद्ध हो जाते हैं, हमारी बुद्धि उतना ही परमात्मा की वाणी को सुनकर उसके अनुसार कार्य करती है। किन्तु ऐसा नहीं है कि बुद्धि हमेशा ही भगवान् की वाणी के अनुसार ही कार्य करती है। साधारणतः बुद्धि मन पर नियंत्रण करती है, किन्तु कई बार इसके विपरीत भी होता है जब मन बुद्धि को नियंत्रित कर लेती है। कई बार मन योजना बनाता है और वह बुद्धि का इस्तेमाल करता है कि कैसे योजना सफल हो जाए। एक चोर का उदाहरण यहाँ दिया जा सकता है। चोरी के बाद वह बुद्धि को प्रयोग करके चोरी के सारे सबूत मिटा देने का प्रयास करता है। यहाँ चोर अपनी बुद्धि का प्रयोग गलत काम के लिए करता है।
जब तक हम अपनी बुद्धि को शास्त्रों के ज्ञान द्वारा पुष्ट नहीं बनाऐंगे तब तक बुद्धि और परमात्मा की वाणी एक नहीं होगी। जितना अधिक हम अपने जीवन में भगवान् के वचनों को सुनेंगे, उतना अधिक हमारी बुद्धि परमात्मा के अनुसार ही कार्य करेगी।