८. नरक सदा के लिए नहीं रहता, भगवद्प्रेम रहता है
भगवद्गीता (१.४३) में अर्जुन कहते हैं कि वंश-परंपरा नष्ट करने वाले सदा के लिए नरकवास करते हैं|
कुछ धर्म-शास्त्रों के अनुसार पापी व्यक्ति सदा के लिए नरकवास करता है| क्या भगवद्गीता भी इसके पक्ष में है?
नहीं, अर्जुन के इस कथन को हमें पूरी भगवद्गीता के सन्दर्भ में समझना होगा| तभी इसकी सराहना कर पाएंगे| गीता (८.१५) में संपूर्ण भौतिक जगत को अस्थाई कहा गया है| चूँकि नरक इस भौतिक जगत का हिस्सा है, वह भी अस्थाई है| यदि नरक सदा के लिए नहीं रहता फिर ग्रंथों में ‘स्थाई नरकवास’ कि बातें क्यों कही गयी हैं? गीता के अगले श्लोक (८.१६) में कहा गया है कि इस भौतिक जगत में कोई भी व्यक्ति किसी एक स्थान पर स्थायी रूप से नहीं रहता| उसका आवागमन लगा रहता है| दूसरे शब्दों में, वह नरक से बाहर भी आता है|
फिर ‘स्थायी नरकवास’ का क्या अर्थ हुआ? यह कथन वंश परंपरा को नष्ट करने तथा संसार कि सामाजिक एवं आध्यात्मिक व्यवस्था को खंडित करने की गंभीरता का वर्णन करता है| व्यक्ति को इस जघन्य कार्य के इतने दीर्घकालिक परिणाम भोगने पड़ते हैं कि एक दृष्टि से वह काल अंतहीन प्रतीत होता है| इसलिए ‘स्थायी नरकवास’, इस शब्द के शाब्दिक अर्थ को नहीं लिया जा सकता| उदहारण के लिए, शास्त्रों में भौतिकवादी व्यक्ति के लिए ‘आत्मह’ (आत्मा कि हत्या करने वाला) शब्द का प्रयोग किया गया है| यद्यपि आत्मा अवध्य है, तथापि जो व्यक्ति सांसारिक विषयों में उलझकर आध्यात्मिक प्रगति कि ओर ध्यान नहीं देता उसके लिए आत्मह शब्द का प्रयोग किया गया है| गीता भगवान् के स्वभाव का वर्णन करती है| भगवान् के स्वभाव को समझकर हम जान पाएंगे कि ‘स्थायी नरकवास’ का प्रयोग केवल शाब्दिक है| श्रीकृष्ण किसी क्रोधी न्यायाधीश के समान नहीं हैं जो नास्तिकों को सदा के लिए नरक-अग्नि में झोंकते हैं| वे इतने दयालु मित्र हैं कि परमात्मा रूप में नास्तिकों सहित प्रत्येक जीवात्मा के हृदय में निवास करते हैं| किसी को नरक में झोंकने कि बात तो दूर, जब जीवात्मा अपने कर्मों के कारण नरक में जाता है तो उस समय भी भगवान् उसके साथ जाते हैं| और वे सही दिशा का चुनाव करने में उसकी सहायता करते हैं जिससे वह उनके नित्यधाम पहुँचकर सदा के लिए सुखी हो सके| इसलिए नरक सदा के लिए नहीं रहता, भगवान् का प्रेम सदा रहता है|
हे प्रजापालक श्रीकृष्ण! मैंने गुरुजनों से सुना है कि कुलधर्म को नष्ट करने वाले लोग नित्य नरक में निवास करते हैं|
भगवद्गीता १.४३