How can we get the determination to apply scripture?
Answer Podcast
Transcription in hindi
प्रश्न: हम शास्त्रों को जीवन में लागू करने की दृढ़ता कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर: आध्यात्मिक ज्ञान के सीखने की प्रक्रिया क्रमिक होती है। अतः हम यह आशा नहीं कर सकते कि शास्त्रों का अध्ययन करने के पश्चात अगले दिन से ही हमारे व्यवहार में आध्यात्मिक प्रगति दिखाई देने लगेगी। यह समझना आवश्यक है कि शास्त्रों को सीखने पर आध्यात्मिक प्रगति एकदम से नहीं होती अपितु धीरे-धीरे होती है। जब हम शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं, नियमित रूप से भक्तों का संग करते हैं, तब जीवन के प्रति हमारी आंतरिक अवधारणा में परिवर्तन आने लगता है और जैसे-जैसे यह अवधारणा बदलती है, वैसे-वैसे क्रमशः हमारे बाहरी चयन में भी परिवर्तन आने लगता है।
एक स्तर पर हम सोच समझकर, पूरी निष्ठा के साथ अपना प्रयास करते हैं कि शास्त्रों के अनुरूप ही अपना जीवन जिऐं। जब इन्द्रिय विषय हमें लुभाते हैं और तंग करते हैं, तो हम श्रीकृष्ण का स्मरण करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु हमारी रक्षा करें। कहने का भाव यह है कि हम एक सोचा समझा प्रयास करते हैं कि इंद्रिय विषयों के प्रलोभनों से बचें। ऐसा करने के लिए हमें प्रयत्नशील रहना भी चाहिए। किन्तु कभी हम अपने प्रयास में सफल होते हैं तो कभी नहीं भी होते।
लेकिन दूसरे स्तर पर जब हम शास्त्रों का नियमित अध्ययन करते हैं तो हमारी मूलभूत धारणाऐं बदलने लगती हैं। जैसे-जैसे हमारी धारणाऐं बदलती हैं, हम अधिकाधिक यह अनुभूति करने लगते हैं कि हम एक आध्यात्मिक जीव हैं और यह विश्वास दृढ़ होने लगता है कि सच्चा आनंद तो श्रीकृष्ण से सम्बंध स्थापित करने में है। अंततः, जब यह बदलाव अवचेतन स्तर पर होने लगता है, तब हम जो चयन करते हैं वे पहले से बेहतर होने लगते हैं। अतः, हमें निरंतर अपनी तरफ से पूरा प्रयास करना चाहिए कि सही निर्णय करें और निराश न हों। किन्तु साथ ही साथ, हम अपनी भक्ति पर भी ध्यान देते रहें जो मूलभूत अवचेतन स्तर पर हमें शुद्ध करती रहती है।
यह ठीक वैसे ही है जैसे एक माँ चाहती है कि उसका बच्चा अच्छे से पढे़-लिखे किन्तु बच्चे का मन बाहर जाकर खेलने में अधिक लगता है। बच्चा प्रतिदिन खेलने के लिए बाहर जाता है और उसकी माँ उसे बार-बार पढ़ने के लिए बुलाती रहती है। माँ प्रतिदिन ऐसा करती रहती है लेकिन साथ ही साथ बच्चा प्राकृतिक प्रक्रिया से बड़ा भी तो हो रहा है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है उसकी बुद्धि भी विकसित होती जाती है और जिस माँ को अपने पाँच साल के बच्चे को पढ़ने के लिए बार-बार कहना पड़ता था, अब उसे अपने पच्चीस साल के पोस्ट ग्रेजुएट बेटे को पढ़ने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब बच्चे की बुद्धि विकसित हो गई है और वह अध्ययन के महत्व को समझने लगा है, और यह सब स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे समय के साथ सम्भव होता है।
इसी प्रकार एक स्तर पर हमें अपनी बुद्धि का उपयोग बच्चे के समान मन को एकाग्र करने में करना होता है। यदि यह गलत दिशा में जाता है, तब हमें इसे वापस लाना होता है। लेकिन जब हम भक्ति का अभ्यास करते रहते हैं, तब हम आध्यात्मिकता में बड़े होते जाते हैं। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी समझ गहरी होती जाती है, हमारी धारणाऐं विकसित होती जाती हैं, वैसे-वैसे सही निर्णय करना हमारे लिए अधिकाधिक स्वाभाविक होता जाता है। अतः ऐसा दो स्तर पर होता है – (क) अपनी इच्छा शक्ति का प्रयोग कर सही निर्णय करने का प्रयास करते रहने से और (ख) भक्ति के निरंतर अभ्यास से, जिससे सही निर्णय करना हमारे स्वाभाव का अंग बन जाता है। इस प्रकार हम अपने जीवन को शास्त्रों के अनुरूप ढाल सकते हैं।
End of transcription.