When we chant, why does our mind get distracted – Hindi?
Transcribed by: Rakesh Garg Prabhu
प्रश्न: जब हम जप करते हैं, तो हमारा मन क्यों भटकता है? इसे भटकने से रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: सामान्यतया देखने में आता है कि जब हम जप करने के लिए बैठते हैं तो हमारा मन सांसारिक विषयों में विचरण करने लगता है। यह सही मायने में जप नहीं कहलाएगा। इस अवस्था में हम नहीं, मात्र हमारी जिह्वा जप कर रही होती है।
वास्तव में मन को जप में लगाना बहुत कठिन है। किसी भी कार्य को सुचारू रूप से करने के लिए आत्मा,मन और इन्द्रियों का एक साथ होना आवश्यक है। उदाहरणार्थ, यदि हम किसी प्रवचन में बैठे हैं, पर हमारा मन कहीं और है तो हम प्रवचन न ठीक प्रकार सुन पायेंगे और न ही समझ पायेंगे। इसी तरह, जप करने का लाभ भी हमें तभी होता है, जब ये तीनों – हम, हमारा मन और जिह्वा – साथ-साथ हों। जपते समय, हमारा मन हमें तरह-तरह से भटकाता है। कई बार मन कहता है – “जप बहुत उबाऊ है, इसे मत करो”। पर यदि कभी हम दृढ़संकल्प कर लेते हैं कि हम एक निश्चित संख्या में माला अवश्य करेंगे, तो मन दूसरा पैंतरा अपनाता है। वह कहता है “अच्छा, यह जिह्वा जप करती रहेगी किन्तु मैं विचरण करता रहूँगा!” अतः मन को वश में रखने और जप में लगाने के लिए हमें तीन बातों पर विचार करना है: (i) मन को क्या विचलित करता है (ii) इसे क्या आकर्षित करता है और (iii) हम ऐसा क्या करें जो हमारे विचलित मन को वापस साथ ला सके।
मन को विचलित करने के हज़ारों कारण हो सकते हैं, पर यदि हम जप के बाद कुछ देर बैठ कर ध्यानपूर्वक सोचें तो पायेंगे कि कुछ विचार हमारे मन में रोज़ आते हैं। जैसे- अमुक व्यक्ति ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया, या मेरी नौकरी या व्यापार का क्या होगा, या मेरे पास धन नहीं है इत्यादि। यदि जप के समय हमारे मन में इस प्रकार के विचार आते हों तो हमें बुद्धिमानी से इन सब बातों का विश्लेषण करना चाहिए और इन सब विचारों को लिख लेना चाहिए। इसके बाद हमें इन सब विचारों के निवारण के विषय में सोचना चाहिए और उन्हें भी कागज पर लिख लेना चाहिए। अगले दिन जप करने से पहले हमें एक बार कागज पर लिखे अपने विचारों और उनके निवारणों को पढ़ लेना चाहिए। अब यदि जप करते समय हमारा मन फिर से उन विचारों के कारण भटकने लगे, तो हमें सोचना चाहिए कि इन सब बातों का निवारण मैंने ढूँढ लिया है और मन को इन बातों के कारण विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार मन के विचलित होने के कारणों को ढूंढ कर और उनका विश्लेषण करने से मन का भटकना कम हो सकता है।
दूसरा, हमें यह सोचना चाहिए कि जप करते समय हम मन को कृष्ण की ओर कैसे आकर्षित कर सकते हैं। इसके लिए हम भगवान का कोई चित्र या हरे कृष्ण महामन्त्र का पोस्टर अपने सामने रख सकते हैं। यदि हम किसी गुरु से दीक्षा प्राप्त हैं, तो हम अपने गुरुदेव का चित्र अपने सामने रख सकते हैं। इसके अलावा भगवान की किसी प्रिय लीला का चित्र अपने सामने रख सकते हैं। इस तरह, जैसे भी हो, जिस प्रकार भी हो, मन को भगवान की ओर आकर्षित करने का प्रयास करना चाहिए। मन में यह भाव रखना चाहिए कि इन्हीं भगवान को तो मैं पुकार रहा हूँ, इन्हीं के नामों का तो जप मैं कर रहा हूँ।
और तीसरा यह कि हम अपने मन को वापस कैसे ला सकते हैं। कई बार जब मन विचरण करता है, हम भी उसके साथ-साथ विचरण करने लगते हैं। इसलिये जप करते समय हम कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे हमारा मन एक बार फिर हमारे साथ आ जाए। उदाहरणार्थ – कुछ माला करने के बाद थोड़ा रुक कर गहरी सांस लें। सोचें कि मेरा मन भटक रहा है, नहीं भटकना चाहिये। या फिर हम शिक्षाष्टकम प्रार्थनाओं के कुछ श्लोक बोल सकते हैं। कभी-कभी लगातार एक स्थान पर बैठ कर जप करते रहने से मन भटकने लगता है। इसके लिए हम उठ कर थोड़ा चल सकते हैं। हालाँकि चलने में भी ध्यान पूरी तरह नहीं लगता है, पर शारीरिक स्तर पर कुछ कार्य करने से मन का भटकना कुछ कम हो जाता है। इसके विपरीत, कभी-कभी यदि चलते रहने के कारण मन इधर-उधर भटकता हो, तो फिर हमें शांति से बैठ कर जप करना चाहिये।
End of transcription.
Answer by: His Grace Chaitanya Charan Prabhu
(www.thespiritualscientist.com)