What are the causes of anger – how to deal with them – Hindi?
Transcribed by: Rakesh Garg Prabhu
प्रश्न: क्रोध के क्या कारण हैं? यदि कोई व्यक्ति हमारे जीवन में ऐसा है जो अकसर क्रोधित रहता हो तो हम उस व्यक्ति की कैसे सहायता कर सकते हैं?*
उत्तर: हर व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार क्रोध के कारण और उसके निवारण अलग-अलग हो सकते हैं। अधिकांशतः क्रोध किसी कामना या योजना पूरी न होने के कारण उत्पन्न होता है। कामना और क्रोध में अंतर होता है। कामना जिस कारण से उत्पन्न होती है, वह उसी कारण में अपना लक्ष्य भी ढूँढती है। किन्तु यह आवश्यक नहीं कि क्रोध जिस व्यक्ति के कारण आया हो वह उसी व्यक्ति पर ही प्रकट किया जाए। क्रोध कहीं भी प्रकट किया जा सकता है| उदाहरण – कभी-कभी आफिस में बॉस कर्मचारियों को डाँटने लगता है क्योंकि उस दिन उसका अपनी पत्नी से झगड़ा हो गया था! कभी-कभी व्यक्ति स्वयं पर ही क्रोध को प्रकट करता है। स्वयं को ही कोसता है, घृणा करता है। कभी-कभी वह भगवान के ऊपर क्रोध करता है कि भगवान ने ऐसा क्यों किया। कहने का भाव यह है कि वास्तव में क्रोध का कारण समझना इतना आसान नहीं है। कामना का स्रोत और कामना का लक्ष्य समान होता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि क्रोध का स्रोत और क्रोध का लक्ष्य भी समान हो।
यदि हम किसी व्यक्ति को अच्छी तरह से जानते हैं तो फिर बातचीत के माध्यम से उनके जीवन के बारे में जानने का प्रयास कर सकते हैं कि उन्हें क्रोध किस कारण से आता है। संभव है कि उनके जीवन में कुछ ऐसी दुर्घटनाऐं घटी हों जिनके कारण उन्हें क्रोध आता हो। कभी-कभी क्रोध का कोई एक कारण नहीं होता। जीवन में कई बुरी घटनाओं के होने के कारण कई बार व्यक्ति भीतर से कटु बन जाता है। जिन लोगों को हम समझते हैं, उनके निकट हैं, उनके साथ आदर और स्नेहपूर्ण व्यवहार से यह कटुता धीरे-धीरे समाप्त हो सकती है। किन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आदर और स्नेह देने पर भी यह कटुता समाप्त नहीं होती। ऐसे व्यक्तियों की सहायता करने में हमें अपनी क्षमता का भी आंकलन करना होगा क्योंकि हमारी सहनशीलता भी असीमित नहीं है। ऐसे व्यक्ति के साथ व्यवहार करने में संभव है कि हम स्वयं उनका क्रोध सहन कर लें, पर इस सहने की प्रक्रिया में हम स्वयं क्रोधित हो सकते हैं और अपना क्रोध किसी अन्य पर प्रकट कर सकते हैं। इससे क्रोध की एक परंपरा आरम्भ हो सकती है। किसी के कारण मैंने आप पर क्रोध किया, आपने किसी तीसरे व्यक्ति पर, और उस तीसरे व्यक्ति ने किसी चौथे पर।
एक बार अमेरिका के लास वेगास नगर में एक संगीत समारोह में एक व्यक्ति ने कोई 50-60 व्यक्तियों को मार डाला। पता नहीं वह किस पर क्रोधित था, बस एक बंदूक लेकर किसी को भी मार डाला। इस उदाहरण से पता चलता है कि क्रोध काफी खतरनाक हो सकता है क्योंकि किसी का भी क्रोध हम किसी पर भी निकाल सकते हैं। इसीलिए हमें देखना चाहिए कि हमारी क्षमता कितनी है। यदि हमारी क्षमता उतनी नहीं है कि उस व्यक्ति को परिवर्तित कर सकें तो फिर हमें उस व्यक्ति से एक उचित दूरी बना कर रखना चाहिए। ऐसा नहीं है कि हम उस व्यक्ति से संबंध तोड़ दें पर हमें समझना चाहिए कि अगर हम स्वयं ही इतने विचलित हैं कि कुछ कर ही नहीं पा रहे तो फिर हम उस व्यक्ति की क्या सहायता कर सकते हैं। किन्तु यदि हम भक्ति कर रहे हैं और भक्ति के क्रियाकलापों से हमें आध्यात्मिक उर्जा मिल रही है तो हम अपनी सहनशीलता को विकसित कर सकते हैं। इस विकसित सहनशीलता के साथ दिए गए स्नेह और आदर से धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति के भीतर स्थित कटुता समाप्त हो सकती है, क्रोध शांत हो सकता है और अंततः मधुरता भी आ सकती है|
कई बार जब लोगों को मन पर बहुत से घाव होते हैं तो वे स्वयं को और अधिक घावों से बचाने के लिए एक कटु आवरण ओढ़ लेते हैं ताकि लोग उनके करीब न आऐं और वे लोगों के करीब ना जाऐं। ऐसा करने से उन्हें लगता है कि उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचेगी। किन्तु इससे होता यह है कि वे स्वयं को एक घाव से बचाने के प्रयास में अन्य प्रकार के घावों के शिकार हो जाते हैं – जैसे अकेलापन, दुनिया के बारे में बुरा सोचना, अन्यों को घाव देना, इत्यादि। किन्तु हमें ध्यान रखना होगा कि हम संबंधों के बिना जी नहीं सकते। हमें कभी अच्छे अनुभव होते हैं तो कभी बुरे। यह सब जीवन में चलता रहता है। यदि हम भक्ति द्वारा भगवान से संबंध जोड़ लें और उसमें स्थिरता अनुभव करें तो हम इस जगत में जो भी संबंध हैं उनके उतार-चढावों को भली भाँति सहन करने की क्षमता प्राप्त कर पाऐंगे तथा शांति से उचित और अनुचित का विचार कर सही निर्णय ले सकेंगे।
End of transcription.
*Answer by His Grace Chaitanya Charan Prabhu*
*(www.thespritualscientist.com)*