Can one go back home back to godhead by practicing Christianity, Islam, Buddhism, Jainism and Judaism?
From: Purushottam Kumar
Can one go back home back to godhead by practicing Christianity, Islam, Buddhism, Jainism and Judaism?
Are Christianity, Islam, Buddhism, Jainism and Judaism authorized religious practice? Can one develop genuine love for God by practicing these religions? If yes then what is the destination of those who are sincerely practicing these religions? Do they go back home back to Godhead?
Answer Podcast
Answer Podcast Hindi
Answer Summary By HG Kanai Krishna Prabhu
- Criterion for going back to Godhead is love of God: Going back to Godhead is not a matter of religious denomination, but of spiritual devotion. If one has developed love of God, one can go back to Godhead irrespective of one’s religious tradition. SP was asked in a radio program called ‘Les crane show’ about whether people who followed Christianity could go back to Godhead. SP answered that anyone, who had developed love of God by practicing any bona fide religion, could go back to Godhead. On contrary, a Christian teacher in the same program said that path back to Godhead was very narrow and only his religion could take one back to God. This may be the opinion of many exclusivists, but not of Vedic scriptures.
- Love of God in other religions: Can people develop love of God by practicing other religions than Vedic religion? Definitely! There are saints like Francis of Assisi, Teresa of Avila who have developed exalted qualities of love of God as mentioned in Srimad Bhagavatam. E.g. tolerance, compassion, non envy. There are Sufis in Islam, they are also considered exalted devotees.
- Theistic religions: Christianity, Judaism and Islam accept that God is ultimate goal of life and one can go back to God by developing love for him. These are theistic religions. Where will practitioners of these religions go? It depends on one’s level of practice. Generally, if one follows the bona fide representative of God, it is God and the representative that takes care of one’s moving forward. How and where exactly one will go depends upon one’s consciousness and one’s individual circumstances. E.g. if one faithfully follows Christianity, Jesus may take the person to another place and further guide him to take him back to Godhead, or purification and revelation may come within one’s heart to go back to Godhead. We can’t say whether such a soul will go back to Godhead within the same lifetime or over multiple lifetimes. It will depend upon one’s individual level of devotion and past Karmic entanglements, conditionings etc. Specifics may vary, even for one following Gaudiya Vaisnava path, but the principle remains the same.
- Pre-theistic religions: Buddhism and Jainism are non theistic and those following these religions purely will rise to mode of goodness. These are pre-theistic religions, focused on not so much the rejection of God, but on proper living. The practitioners of these paths will get elevation based on level of mode of goodness assimilated. In Buddhism, there’s a personalist tradition which focuses on Buddha as God and some Buddhists want to attain his abode. If the practitioner has developed devotion for Buddha, that’s additional to just development of mode of goodness, and so it is a further factor in his favor.
- To summarize, anyone who is following a path given by God or by arrangement of God will be elevated by that path. Rather than looking at the religious denomination, we should look at conceptual understanding and behavior of the practitioner. Understanding people’s beliefs and seeing their practices, we can understand what their destination will be. Chapter 17 of Bhagavad Gita talks about three kinds of faith, and we can refer to this chapter to understand the destinations of practitioners of these religions.
Transcribed by: Amit Agrawal Prabhu, Nidhi Agrawal Mataji (Noida)
प्रश्न- क्या ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन और यहूदी धर्म के पथ को अपनाकर परमधाम की प्राप्ति हो सकती है?
उत्तर- यदि अपने अंदर ईश्वर के प्रेम को विकसित कर लिया जाए तो निश्चित रूप से ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन और यहूदी धर्म को अपनाकर भी परमधाम की प्राप्त की जा सकती है। ईश्वरीय प्रेम सांप्रदायिक नहीं है बल्कि भक्ति पर आधारित है।
श्रील प्रभुपाद के अनुसार सभी धर्म सच्चे हैं। यदि किसी को भी अपने ईश्वर से सच्चा प्रेम है तो वह अवश्य ही परमधाम को प्राप्त कर सकता है।
एक ईसाई धर्म उपदेशक के अनुसार ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता बहुत संकीर्ण है। केवल इसाई धर्म ही ऐसा धर्म है जो अधिकृत और सच्चा है। किन्तु वैदिक धर्म ऐसा नहीं मानता।
वैदिक धर्म के अनुसार किसी धर्म विशेष से संबंधित होना भक्ति का मापदंड नहीं है। ईश्वर के प्रेम का विकासित होना ही भक्ति का मापदंड है। फ्रांस के संत अस्सीसी एवं अविला की संत टेरेसा का भगवान के प्रति प्रेम असाधारण था। इन्होंने दया, करूणा, क्षमा और सहनशीलता जैसे ईश्वरीय प्रेम के सर्वोत्तम गुणों का अपने अंदर विकास किया। श्रीमद्भागवतम् में भी भक्तों के इन्हीं गुणों का वर्णन किया गया है। इस्लाम में सूफी भी उत्कृष्ट भक्त होते हैं।
जिसमें भी ईश्वरीय प्रेम के प्रति सच्ची जागृति होती है वह परम स्थान की प्राप्ति कर सकता है। इसाई, यहूदी और इस्लाम ये तीनों ही धर्म मानते हैं कि ईश्वर ही जीवन का लक्ष्य है और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ईश्वर के प्रेम की आवश्यकता होती है। साधारणतया यदि हम ईश्वर के प्रतिनिधि का अनुसरण करते हैं तो प्रतिनिधि और ईश्वर इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम अपने प्रेम का सही ढंग से विकास करे।
ईश्वरीय प्रेम विकासित करने पर किसको कौन सा स्थान प्राप्त होगा यह अपनी-अपनी चेतना और परिस्थिति पर निर्भर करता है। यदि कोई सच्चे मन से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है तो यीशु उसे ऐसे स्थान पर ले जाएंगे जहां उसकी भक्ति में विकास होगा। अंत में उसे भगवान कृष्ण की प्राप्ति होगी या फिर अन्दर से शुद्धिकरण हो सकता है। यह विकास कब होगा इस बात की कोई समय सीमा निश्चित नहीं होती क्योंकि यह सब हमारे भक्ति के स्तर और पूर्व जन्म के कर्मों पर आधारित होता है। यह बात स्पष्ट है कि भगवान के प्रति यदि हमारी भक्ति शुद्ध है और हम अधिकृत भक्त का अनुसरण कर रहे हैं तब हम सुरक्षित रहते हैं और आध्यात्मिक प्रगति करते हैं।
बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अनुयायी भगवान के अस्तित्व को नहीं मानते पर यदि वे नैतिकता और सच्चे मन से अपने धर्म का पालन करते हैं तो इससे उनका राजसिक और तामसिक गुणों से शुद्धिकरण होगा। दर्शन शास्त्र के अनुसार बौद्ध धर्म में भगवान को नकारने से अधिक सात्विक जीवन व्यतीत करने पर बल दिया गया है। गौतमबुद्ध ने शास्त्रों को नकार दिया था। उनका कहना था कि आप शास्त्रों का पालन मत करो। बस एक अच्छा जीवन जीने की शिक्षा लो। उदाहरण के लिए जो व्यक्ति पशुओं की हत्या करते हैं और उनका मांस खाते हैं क्या उन्हें समझ नहीं आता कि पशु भी हमारी तरह जीव हैं, उन्हें भी हमारी तरह पीड़ा होती है। बुद्ध का ज्ञान व्यवहारिक अधिक था। बौद्ध धर्म और जैन धर्म सात्विक जीवन जीने की बातें करते हैं। संक्षेप में जो भी ईश्वर द्वारा दिए गए मार्ग का अनुसरण करता है, वह उस मार्ग पर प्रगति करता है।
महत्वपूर्ण यह है कि भक्ति को संप्रदाय की दृष्टि से न देखकर, विचारधारा और आचरण की दृष्टि से देखना चाहिए। यह बात श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय में भी बतायी गयी है।
संक्षेप में, मूल सिद्धांत यह है कि यदि हमें भगवान के प्रति प्रेम विकसित कर लें तो हम उत्तम स्थान प्राप्त कर सकते हैं, चाहें हम किसी भी धर्म का पालन कर रहे हों।
End of transcription.