How can a student practice bhakti?
Answer Podcast
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Transcribed by: Raji Nachiappan (Melbourne)
Question: How can a student practice bhakti?
Answer: It is fortunate that an opportunity to connect with Krishna comes in youth itself. Youth is a time when we have energy, intellectual sharpness and a lot of drive-in our lives. If at this time, we can get Krishna into our lives, then all our youthful energy, intelligence, and drive, they can all be constructively utilized.
One of the biggest temptations in youth is to postpone spiritual life for later. The idea of wanting to postpone spiritual life for later comes because we think that spiritual life only has other-worldly benefits. However, spiritual life also offers us these-worldly benefits. When we practice spiritual life seriously, it enables us to become more focused, calm, and self-controlled by which whatever we do, we will be able to do it better.
The vision of life that bhakti offers us is – What we are is God’s gift to us and what we become is our gift to God. Whatever talents, abilities, and resources we have are God’s gift to us and when we use them in a mood of service to develop those abilities and to become better, that is our gift to God.
The studies that we do as a student, we do not just do to get a degree or to get a job, but we do it as a service to Krishna. Earlier, we may have studied to get good marks, however, if we study well as a devotee and do well, then when our friends enquire about it, then we get an opportunity to tell them about the spiritual life. We should see our studies also as a means to serve to Krishna.
That way if we focus primarily on direct devotional activities as much as our studies allow, then we can move onwards to Lord Krishna even through our other activities, including our studies. If possible, finding other devotees in the same age group will enable like-minded associations,s and that way we can progress.
End of transcription.
Hindi translation:
प्रश्न: एक छात्र भक्ति का अभ्यास कैसे कर सकता है?
उत्तर – इसे सौभाग्य ही कहा जाएगा यदि किसी को श्रीकृष्ण से जुड़ने का अवसर युवावस्था में ही प्राप्त हो जाए। युवावस्था वह समय होता है जब हमारे भीतर ऊर्जा, बौद्धिक कुशाग्रता और कठोर परिश्रम करने की क्षमता भरपूर होती है। यदि इस समय हम कृष्णभक्ति को अपने जीवन में अपनाते हैं, तब हम अपनी युवा ऊर्जा, बुद्धि और परिश्रम करने की क्षमता, सभी का, रचनात्मक उपयोग कर सकते है।
वर्तमान समय में युवाओं में यह सोच बहुत गहरी बैठी हुई है कि “आध्यात्मिकता तो वृद्धावस्था के लिए होती है”। इस प्रकार का विचार उनमें इसलिए है क्योंकि वे सोचते हैं कि आध्यात्मिकता का लाभ मात्र परलोक में मिलता है। हालाँकि, आध्यात्मिकता का लाभ वर्तमान जीवन में भी, अर्थात् इस लोक में भी, प्राप्त किया जा सकता है। जब हम आध्यात्मिकता के अभ्यास को गम्भीरता से अपनाते हैं, तो यह अभ्यास हमें और अधिक एकाग्र, शान्त और आत्म-संयमित बनने में सहायता करता है। परिणामस्वरूप, हम जो भी कार्य करते हैं, उन्हें और भी अच्छे ढंग से कर पाते हैं।
आध्यात्मिकता अर्थात् भक्ति हमें जीवन जीने का सही दृष्टिकोण सिखाती है। हमारे गुण हमारे लिए भगवान का एक उपहार हैं। इन गुणों के कारण हम जो जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं वह भगवान के लिए हमारा एक उपहार है। अर्थात्, हमारी प्रतिभा, योग्यता और संसाधन ये सब भगवान ने हमें उपहार स्वरूप दिए हैं। जब इन संसाधनों का उपयोग निष्काम सेवा की भावना से किया जाता है तो ये गुण और विकसित होते हैं, हम पहले से और अधिक श्रेष्ठ बनते हैं, और यही भगवान के लिए हमारा उपहार होता है।
एक छात्र के रूप में हमें अध्ययन केवल डिग्री या नौकरी पाने के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि श्रीकृष्ण की सेवा के लिए करना चाहिए। भक्ति अपनाने से पूर्व, हम अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए अध्ययन करते थे, किन्तु एक भक्ति अपनाने के बाद यदि हम अच्छी तरह से अपना अध्ययन करते हैं और अच्छा परिणाम प्राप्त करते हैं, तो जब हमारे मित्रगण हमारी सफलता के बारे में जानने की उत्सुकता दिखाऐं तब हमारे पास अवसर होगा कि हम उन्हें बताऐं कि कैसे आध्यात्मिकता अपनाने के बाद हमारे अध्ययन की गुणवत्ता में सुधार हुआ। इस प्रकार हमारे मित्रगण भी आध्यात्मिकता को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। अतः, हमें अपने अध्ययन को भी श्रीकृष्ण की सेवा के अवसर के रूप में देखना चाहिए।
यदि सम्भव हो तो अपने ही आयु वर्ग के ऐसे छात्रों को खोजें जो समान रुचि वाले हों ताकि एक संग बन जाए जिससे भक्ति करने में सुविधा भी हो और प्रगति भी।
इस प्रकार अध्ययन के साथ-साथ भी प्रत्यक्ष भक्ति करके हम श्रीकृष्ण के निकट पहुँच सकते हैं।
End of transcription.