How can we cultivate the mode of goodness when we are puppets of the modes?
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Answer Podcast Hindi
Transcription by: Srimati Tanvi Tayal Mataji (Noida)
प्रश्र: हम अपने भीतर सत्वगुण को कैसे बढ़ाऐं जब हम जानते हैं कि हम तीनों गुणों के हाथों में कठपुतलियाँ हैं?
उत्तर: हम इन गुणों की कठपुतलियाँ हैं, इसका अर्थ यह है कि हम इन गुणों से पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं। किन्तु हमारे पास थोड़ी बहुत स्वतंत्रता है जिस से हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि हमें किस गुण से प्रभावित होना है। इसका अर्थ यह है कि माना कि हम कठपुतली हैं किन्तु हम किस गुण की कठपुतली बनना चाहते हैं इसका निर्णय हमारे हाथ में है।
हमें यह समझना चाहिए कि हमारे पास एक नियमित दायरे में असीमित स्वतंत्रता है। जैसे एक गाय को रस्सी के द्वारा खूँटे से बांध दिया जाए तो उस रस्सी की लम्बाई के अंदर उस गाय के पास चलने फिरने, उठने बैठने की असीमित स्वतंत्रता होती है। किन्तु उस नियमित दायरे के बाहर हमारी स्वतंत्रता असीमित नहीं है। उदाहरणार्थ, जैसे हम पक्षियों की भाँति उड़ नही सकते क्योंकि हमारे पक्षियों की तरह पँख नहीं हैं।
हमें अपने भीतर उन प्रवृत्तियों की ओर ध्यान देना है जिनपर निर्णय लेना हमारे हाथ में है। संभव है कि इन प्रवृत्तियों में से किन्हीं को हम न बदल पाऐं। उदाहरणार्थ, हम किसी प्रख्यात गायक की तरह गाना न गा पाऐं। किन्तु हमारे भीतर कई मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ ऐसी हैं जिनकी मात्रा को कम या अधिक करना हमारे अधिकार क्षेत्र में है। जैसे कुछ लोग अधिक आलसी होते हैं ओर कुछ कम। इस प्रकार की प्रवित्तियों को हम बदल सकते हैं। कैसे? अपने विचारों ओर अपने बाहरी वातावरण को बदल कर। जैसे एक व्यक्ति देर से उठता है और इस कारण वह अपने अध्यात्मिक नियमों का उचित ढंस से पालन नहीं कर पाता। यदि ऐसा व्यक्ति ऐसे वातावरण में रहे जहाँ सभी लोग देर से उठते हों तो इससे तमोगुण और उत्तजित होगा। किन्तु यदि वही व्यक्ति ऐसे लोगों के साथ सोता है जहाँ सब लोग सवेरे जल्दी उठ जाते हों तो इन सभी लोगों के सात्विक गुणों का प्रभाव उस पर भी पड़ेगा। यह एक बड़ा सीधा-सादा उदहारण है जिसको विस्तार कई अन्य परिस्थितियों पर किया जा सकता है। यदि हम ऐसी परिस्थितियों का चुनाव करें जो एक किसी गुण विशेष में स्थित हों तो हम उन गुणों को अपने भीतर बढ़ा सकते हैं।
यदि हम अपने भीतर किसी विशेष प्रकार के विचारों को घुसने की अनुमति देते रहें तो हम उन विचारों से सम्बंधित गुणों का विकास करेंगे। उदाहरणार्थ, अत्यधिक रजोगुणी पुस्तकें पढ़ना, अत्यधिक समाचार पत्र पढ़ना और फिल्में इत्यादि देखना, इन सब से रजोगुण बढ़ेगा। किन्तु इसके विपरीत यदि हम अध्यात्मिक पुस्तकें अथवा सात्विक साहित्य पढ़ते हैं तो उससे हमारे भीतर सत्व गुण बढ़ेगा।
खाली समय में हम किन बातों पर चिन्तन करते हैं उससे भी हम अपने भीतर गुणों को प्रभावित कर सकते हैं। सात्विक विचारों पर चिन्तन से सत्व बढ़ता है किन्तु रजोगुणी विचारों के चुनाव से रजोगुण बढ़ेगा। हमारे चिंतन के चुनाव द्वारा भी हम अपने भीतर के गुण निर्धारित करते हैं।
भूतकाल में हमारी आदतों के कारण कई परिस्थितियों में हमारा चुनाव एक निश्चित ढर्रे पर होता है। इन आदतों को बदलने के लिए संभव है कि हमें एक बड़ा प्रयास करने की आवश्यकता हो किन्तु यह सम्भव है। हमें डटे रहना होगा। अपने लिए बाहरी और भीतरी परिस्थितियों का चुनाव कर हम अपने गुणों को निर्धारित कर सकते हैं।
ये छोटे-छोटे निर्णय होते हैं जो हम अपने दैनिक जीवन में ले सकते हैं किन्तु लम्बे समय में इनका प्रभाव बहुत गहरा हो सकता है। इन निर्णयों के उचित चुनाव द्वारा हम अपने जीवन को एक नई ऊँचाई पर ले जा सकते हैं।
End of transcription.