How can we deal with our past conditionings that come in the way of our bhakti – Hindi?
Transcription by: Srimati Manju Agrawal Mataji
प्रश्न: हम भक्ति द्वारा अपने पूर्व जन्मों से मिलने वाली बुरी आदतों से कैसे निपट सकते हैं?
उत्तर: हम सभी पूर्व जन्मों से कुछ बुरी आदतें साथ लेकर आते हैं, जैसे क्रोध, लोभ, बदले की भावना इत्यादि। ऐसी आदतें हमारी भक्ति में बाधा बन जाती हैं। इनका सामना करने के लिऐ हमें दो बातों का प्रयास करना होगा।
पहला, हम जिस अवस्था में भी हैं, हमें भक्ति अवश्य करते रहना है। ऐसा कभी नहीं होगा कि रात में भगवान हमारे सपने में आयेंगे और सुबह उठते ही हमारी सारी बुरी आदतें समाप्त हो जायेंगी। हम सबमें अलग-अलग प्रकार की बुराईयाँ होती हैं। कुछ बुराईयाँ तो मात्र कुछ ही महीने भक्ति करने से चली जाती हैं, तो कुछ को कई वर्ष, यहाँ तक कि कई दशक तक लग सकते हैं। ऐसा नहीं है कि बुराईयों के कारण हमें भक्ति नहीं करनी चाहिये। जब हम भक्ति करते रहते हैं, तो परिवर्तन होता है और नम्रता आती है।
वास्तव में जब हम अपनी बुरी आदतों को देखें तो उससे हमारे अंदर नम्रता आनी चाहिए। इन आदतों को छोड़ना बड़ा कठिन होता है। हमें यह समझना चाहिए कि बिना भगवान की सहायता के हम अकेले अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ सकते। इसके लिए हमें भगवान से प्रार्थना करते रहना चाहिए।
दूसरा, यदि हमसे कोई ऐसा गलत बर्ताव हो जाता है तो हमें उसे अपनी पराजय न मानकर एक गलती या चूक मानना चाहिए। ऐसा नहीं है कि हम चौबीसों घंटे गलतियाँ करते हैं। दिन में एक बार, सप्ताह में या महीने में कभी गलती हो सकती है। हम सभी कभी सत्वगुण में, कभी रजोगुण में और कभी तमोगुण में होते हैं। जब हम रजोगुण या तमोगुण में होते हैं, तो हम स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। पर जब हम सत्वगुण में होते हैं, तब विचार कर सकते हैं कि मेरा गलत व्यवहार किस परिस्थिति में हुआ और मैं उसे कैसे टाल सकता था। इस तरह हम आंकलन कर सकते हैं और भविष्य के लिए बेहतर तैयार हो सकते हैं। किसी रास्ते पर पहली बार जाते समय, यदि कोई गड्ढा हो, तो गाड़ी को झटका लग जाता है। पर दूसरी बार जाने पर हम सतर्क हो सकते हैं और गड्ढे से बच कर निकल सकते हैं।
कई बार जब हम गलती करते हैं तो बाद स्वयं को कोसते हैं, कि मैंने क्या कर दिया, मुझे नहीं करना चाहिए था इत्यादि। इसके विपरीत हमें यह सोचना चाहिए कि भविष्य में ऐसी परिस्थिति को कैसे टाल सकता हूँ। कई बार मनःस्थिति और परिस्थिति दोनों विपरीत होने पर स्थिति विस्फोटक हो सकती है। पर यदि हम चौकन्ने रहें तो उस स्थिति को टाल सकते हैं। ऐसे परिस्थितियों में हमें तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए है किन्तु उसे कुछ समय के लिए टाल कर उस पर विचार करना चाहिए।
मैं अपने उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मैं एक लेखक हूँ तथा बहुत से लोगों से ईमेल पर संदेशों का आदान-प्रदान करता हूँ। कभी-कभी क्रोध आने पर मैं तीखे शब्दों वाला एक लम्बा चौड़ा ईमेल लिख देता हूँ। इस परिस्थिति से बचने के लिए मैंने अपने लिए एक नियम बनाया है कि मैं कोई भी ईमेल लिखने के तुरन्त बाद नहीं भेजूँगा, बल्कि चौबीस घन्टे के बाद भेजूंगा। इससे मुझे शांत होने का अवसर मिल जाता है। अकसर ऐसा होता है कि जब मैं अपना वही ईमेल दोबारा पढ़ता हूँ तो उसे डिलीट कर देता हूँ या फिर फेरबदल करने के बाद भेजता हूँ। इससे मैं कई प्रकार की समस्याओं से बच जाता हूँ जो मेरे क्रोध के कारण सम्भवतः उत्पन्न हो जातीं।
हमें तुरन्त प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए। इस प्रकार की आदत विकसित करने के लिए हमें अपने भीतर सत्वगुण का विकास करना होगा। सत्व का विकास आध्यात्मिक कार्यों द्वारा जैसे जप, कीर्तन, भगवान के विग्रहों की सेवा, कथा श्रवण इत्यादि द्वारा हो सकता है।
हमें देखना है कि हमारे लिए अनुकूल साधन क्या है। हम कैसे भगवान कृष्ण का स्मरण आसानी से कर सकते हैं। फिर कभी कोई विपरीत परिस्थिति आए तो तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचें और फिर कुछ समय विचार करने के बाद उचित निर्णय लें। इस प्रकार सकारात्मक प्रयासों द्वारा हम स्वयं को बदल सकते हैं।
End of transcription.