How can we know that we are progressing spiritually?
Answer Podcast
Transcription :
Transcriber: Sharan Shetty
Edited by: Keshavgopal Das
Question: How can we know that we are progressing spiritually?
Answer: Bhagavad-gita 02.16 states, nasato vidyate bhavo nabhavo vidyate satah. The material is characterised by change and the spiritual is characterised by constancy. The material keeps changing but the spiritual never changes. When we are in material consciousness, we will be shaken by the changes in this world. To the extent we become spiritual, we will not be disturbed by the changes.
This world is like an ocean where there will always be waves. A person in an ocean will continuously be going up and down due to the waves. However, if the person gets into a boat which is anchored, then the shaking will be much less. Similarly, in this material world, there will always be changes causing anxiety, but when we become spiritual and connect with the unchanging reality God, then it is like sitting in a boat that is anchored. We connect with God through yoga, especially bhakti yoga, and it is like anchoring ourselves to a higher reality. When we do this, the shaking will reduce even further.
The more spiritual we become, the calmer we will be. We will be concerned but not disturbed. It does not mean that we will become uncaring or irresponsible. We have to function in the world and need to respond appropriately to the changes. When there will be changes in our life, we will work to rectify the situation but won’t be personally threatened by the change. The level of anxiety, stress, agitation going down is first marker of our progress in spiritual life.
Also, it is important to note that anxiety and craving are two sides of the same coin. To the extent we become spiritual, our craving for material things will go down. In material consciousness, self-worth is determined by what we possess. When our craving for material enjoyment goes down this indicates spiritual progress. This is second marker of spiritual advancement.
On a positive side, when we progress spiritually, we will start experiencing inner joy and peace. This is the third marker of our spiritual progress.
The more we advance; spiritual consciousness will become more and more our home territory. We do not always remain at home. Sometimes we also go out for work but then come back home after some time. Similarly, when we are in spiritual consciousness, it does not mean that we do not carry out our material responsibilities. Just like we come back home after completing our work, we come back to the spiritual consciousness after completing our material responsibilities.
In this way, by the decrease of anxiety, the decrease of craving and increase of joy and happiness in the spiritual realm, we can understand that we are progressing spiritually.
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Trancription in Hindi
प्रश्न: हम कैसे समझ सकते हैं कि हम आध्यात्मिक रूप से प्रगति कर रहे हैं?
उत्तर: आध्यात्मिक जीवन में प्रगति का पहला सूचक है जीवन से चिंता, तनाव और उत्तेजना का कम होना। भगवद्गीता 2.16 में कहा गया है – नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। अस्थिरता भौतिक जीवन का लक्षण है और स्थिरता आध्यात्मिक जीवन का। जब हम भौतिक चेतना में स्थित होते हैं, तब हम इस संसार की अस्थिरता से भी प्रभावित होते हैं। हमारी चेतना जितनी आध्यात्मिक होती जाएगी, उतना ही वह भौतिक अस्थिरता से विचलित नहीं होगी।
यह संसार एक सागर की भाँति है जहाँ सदा लहरें उमड़ती रहती हैं। मनुष्य को इन लहरों के उतार-चढ़ाव से निरंतर संघर्ष करते रहना पड़ता है। ऐसे में मनुष्य यदि किसी लंगरयुक्त नौका में बैठ जाए, तब डगमगाना बहुत कम हो जाता है। इसी प्रकार, इस भौतिक जगत में सदा व्याकुल करने वाले परिवर्तन होते रहते हैं किन्तु जब हमारी चेतना आध्यात्मिक हो जाती है और चिरस्थायी परम तत्व भगवान से जुड़ जाती है, तब वह एक लंगरयुक्त नौका में बैठे रहने जैसा होता है। जब हम योग, विशेषकर भक्तियोग, के माध्यम से भगवान से जुड़ते हैं तो यह ऐसा है मानो हमने स्वयं किसी बड़ी वास्तविकता को कसकर पकड़ लिया हो। ऐसा करने के बाद जीवन में डगमगाना बहुत कम हो जाता है।
हम जितना अधिक आध्यात्मिक होंगे, उतना ही शांत रहेंगे। हम परिस्थितियों से चिंतित हो सकते हैं किन्तु व्यथित नहीं। इसका अर्थ लापरवाही अथवा गैरजिम्मेदारी नहीं। हमें संसार में अपने दायित्व का निर्वाह भी करना है और अस्थिरता का सामना भी। आध्यात्मिक रूप से उन्नत होने पर जब हमें जीवन में अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा तब हम उसे धैर्य के साथ कर पाऐंगे और अस्थिरता के कारण विचलित नहीं होंगे।
साथ ही, यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि चिंता-तनाव और भौतिक वस्तुओं की लालसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जितना हम आध्यात्मिक होते जाएंगे उतना ही भौतिक वस्तुओं के लिए हमारी लालसा कम होती जाएगी। भौतिक चेतना में, हम अपना मूल्यांकन इस आधार पर करते हैं कि हमारे पास कितनी धन-संपत्ति है। जब भोग-विलास की हमारी लालसा कम होने लगे तब समझ जाऐं कि हम आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं। यह आध्यात्मिक प्रगति का दूसरा सूचक है।
चिंता-तनाव का कम होना, भोग-विलास की लालसा का कम होना – इनमें हमारे भीतर की नकारात्मकता घटती है। आध्यात्मिक प्रगति के कारण एक सकारात्मक बदलाव भी होता है। जैसे-जैसे हम और अधिक आध्यात्मिक प्रगति करेंगे हम शांति और आंतरिक आनंद का अनुभव भी करने लगेंगे। यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति का तीसरा सूचक है।
इस प्रकार हम जैसे-जैसे आध्यात्मिक प्रगति करते जाऐंगे उतना ही अधिक आध्यात्मिक चेतना हमारे मन में अपना स्थान बनाती जाएगी । हम घर पर ही सारा समय नहीं बिताते, कभी-कभी हम काम के लिए घर से बाहर भी जाते हैं किन्तु फिर कुछ समय पश्चात घर वापस आ जाते हैं। इसी प्रकार, जब हमारी चेतना आध्यात्मिक हो जाती हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपने भौतिक उत्तरदायित्वों को भूल जाते हैं। जैसे हम अपना काम पूरा करके घर वापस आ जाते हैं, वैसे ही हम अपनी भौतिक उत्तरदायित्वों को पूरा करके पुनः आध्यात्मिक चेतना में लौट आते हैं।
इस प्रकार जीवन में चिंता-तनाव, भोग-विलास की लालसा में कमी होना तथा आनंद और प्रसन्नता में वृद्धि होना जैसे सूचकों से हम समझ सकते हैं कि हम आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं।
End of transcription.