How can we maintain our faith amid extreme difficulties?
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प्रश्न: जीवन में अनेक उलझनों के बीच हम भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा को कैसे बनाए रख सकते हैं?
उत्तर: एक मानव होने के नाते हम सब सीमित हैं। ऐसा समझना भूल होगी कि भक्ति का अभ्यास हमें हमारी मानवीय सीमाओं से परे ले जा सकता है। जीवन में विपत्तियों के बीच व्याकुल होना स्वाभाविक है। जब श्रील प्रभुपाद दिल्ली की सड़कों पर पत्रिकाएँ बाँट रहे थे, तब एक गाय ने उन्हें टक्कर मार दी। श्रील प्रभुपाद उस प्रहार से सड़क पर गिर पड़े। उनकी सारी पत्रिकाएँ तितर-बितर हो गईं। उन्होंने उठने का प्रयास किया किन्तु उठ नहीं पाए। वहाँ दिल्ली की सड़क पर पड़े-पड़े उनके मन में विचार आया – मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
श्रील प्रभुपाद ने अपने एक तात्पर्य में लिखा है – एक भक्त विचलित हो सकता है किन्तु निराश नहीं। विचलित अर्थात् यह न समझ पाना कि क्या करें क्या न करें। निराश अर्थात् कुछ भी करने का उत्साह न होना। हम सभी का जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। भले ही हमारी मंशा श्रीकृष्ण की सेवा करने की हो, किन्तु कभी-कभी यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि श्रीकृष्ण की सेवा कैसे करें।
विचलित होने और निराश होने के बीच के अंतर को समझना महत्वपूर्ण है। हर किसी के जीवन में उलझनें आती हैं क्योंकि जीवन सामा्न्यतः जटिल है। एक मानव होने के नाते हम सीमित हैं अर्थात् हम पतनशील हैं। हम श्रीकृष्ण की भाँति अनंत और अच्युत नहीं हैं। हम सीमित हैं अतः निश्चित रूप से जीवन में कभी न कभी विचलित होंगे। हम निराश तब होते हैं जब जीवन की जटिलताओं के कारण आशा खो बैठते हैं और अंततः पलायन कर जाते हैं। आध्यात्मिकता हमें श्रीकृष्ण की भाँति अच्युत नहीं बनाती। आध्यात्मिकता हमारी निकृष्ट प्रकृति – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर्य – से ऊपर उठने में हमारी सहायता करती है ताकि भीतर से शुद्ध होने पर हम अपनी उलझनों को निराशा में परिवर्तित न होने दें।
जब जीवन में हमारे सामने कोई उलझन अथवा संकट आए, जब हम किसी मार्ग पर चलें और अचानक अंधेरा छा जाए, तो ऐसे समय में यह मंत्र याद रखें – “छोटे-छोटे सरल कदम”। हम स्वयं से पूछें – मैं अभी क्या कर सकता हूं? मैं अभी, इस समय, श्रीकृष्ण की कोई छोटी-मोटी सेवा कैसे कर सकता हूँ। जीवन में बड़े लक्ष्यों के निर्धारण के लिए स्थिरता की आवश्यकता होती है। जब हम उलझनों से घिरे होते हैं जब हम बड़े-बड़े लक्ष्यों के बारे में ठीक से नहीं सोच पाते हैं। ऐसे समय में जब सब कुछ हमारे विपरीत जा रहा हो, हमें तात्कालिक परिस्थिति पर ध्यान देने की सबसे अधिक आवश्यकता है।
जब परिस्थितियाँ अत्यधिक कठिन हो जाऐं, तो हमें बस उतना ही आगे का सोचना चाहिए जिसे हम ठीक से नियंत्रित कर सकें। मैं अगले एक घंटे, एक दिन, एक सप्ताह के लिए “सर्वश्रेष्ठ” कैसे बन सकता हूं? “सर्वश्रेष्ठ” अर्थात् मैं चिड़चिड़ा नहीं हूँ, किसी पर चिल्ला नहीं रहा हूँ, स्वयं को कोस नहीं रहा हूँ आदि। यदि हम अपने व्यवहार को एक घंटे, एक दिन, एक सप्ताह के लिए नियंत्रित कर सकते हैं, तो हम स्वयं की सराहना करें, हमें आत्मबल देने के लिए श्रीकृष्ण का धन्यवाद करें और फिर एक बार अगले एक घंटे, एक दिन, एक सप्ताह के लिए स्वयं पर नियंत्रण करने का प्रयास करें। जब जीवन में निराशा घेर ले तो हमें स्वयं का उत्साहवर्धन करना चाहिए। हमें अपने भीतर सकारात्मकता और एक उद्देश्य की भावना पैदा करने के लिए जो भी करना पड़े उसका प्रयास करना चाहिए। “छोटे-छोटे सरल कदम” उठाने से, भले ही हमारा जीवन पुनः प्रकाशवान न हो किन्तु हमारी सेवा करने की भावना – मैं अभी श्रीकृष्ण की सेवा कैसे कर सकता हूँ, मैं अभी कौन से छोटे-छोटे कदम उठा सकता हूँ – हमारे लिए एक छोटे से दीपक की भाँति बन जाएगी। यह छोटा सा दीपक हमें एक कदम आगे का मार्ग दिखाएगा। अंतत: हम पाऐंगे कि इस प्रकार छोटे-छोटे कदमों के कारण हम चलते भी रहेंगे और कठिन समय में भी प्रगति करते रहेंगे।
जीवन की जटिलताऐं हमें विचलित करेंगी, किन्तु हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। हम निराशा से बच सकते हैं यदि हम अपनी सेवा करने की भावना पर ध्यान बनाऐं रखें । हम बस छोटे-छोटे सरल कदम उठाऐं, और इससे धीरे-धीरे अंतर आने लगेगा। यदि हम श्रीकृष्ण की सेवा करते रहें, तो श्रीकृष्ण हमारी कठिनाइयों को दूर करने में सहायता करेंगे। हमारे कर्म हमें जिस भी कठिनाई मेें डालेंगे, अपने प्रयास और श्रीकृष्ण की कृपा से ही हम उससे बाहर निकल पाऐंगे।
End of transcription.