How to forgive ourselves if we have made a serious mistake?
Answer Podcast
Transcription :
Transcribed by: Raji Nachiappan
Question: How to forgive ourselves if we have made a serious mistake?
Answer: Firstly, we are the only resource we have. All our other resources are dependent on the foundation of this resource. Even Krishna cannot help us, if we do not help ourselves. For example, you have a car that has a history of break-downs on a regular basis. However, if that is the only car you have and there is no way you can buy a new car, you can kick or punch the car in frustration, but you will not take a big bolder and break the car completely, out of anger.
Similarly, we are the only resource we have. There is no other resource for us. Uddhared atmanatmanam (BG 6.5)– Lord Krishna says elevate yourself with the mind, and do not degrade yourself with the mind. Now, who is going to do the elevation? We have to do it. Krishna is there to help if we want to do it, but it is we who have to do it.
For example, if we had an assistant or an employee who makes a mistake, then we may be angry, we may chastise and berate them. In the past, masters even beat the employee, but if we beat up the employee to an extent that the employee cannot even walk, then there is no use. The master has to do all the work himself. Similarly, if we become so upset with ourselves, that we become disheartened and start feeling hopeless, then there is no use because we are our only resource. Therefore, if there are changes that are to happen, then we need to begin it. Once we begin, Krishna can help.
Secondly, Krishna is such an expert that he can work even through our mistakes. Our mistakes are not Krishna’s plan but our mistakes can be included in his plan. Lord Krishna does not plan that we make mistakes and neither does he want us to make mistakes, but if we make mistakes, Lord Krishna’s plan can include them. For example, in the famous Akshaya-patra pastime, wherein Durvasa muni arrives for a meal at the Pandavas’ residence after Draupadi has eaten. Usually in houses, after food utensils are cleaned. For special utensils, e.g. silver or golden utensils, they are cleaned very carefully. For an extraordinary utensil like Akshaya-patra, how is that Draupadi could not have cleaned it properly? In a way it is a mistake, but Lord Krishna acted through that mistake. Therefore, we do not have to think of our mistakes as permanently condemning. Mistakes happen and Lord Krishna’s plan can act through our mistakes.
The other example is that of a GPS. If the GPS tells us to turn right and if we instead turn left, the GPS does not stop guiding us because we did not follow its direction. The GPS then re-routes and tells us the right path again. Similarly, even if we commit mistakes, Lord Krishna can still work through our mistakes and guide us. That way we can still have positivity and hope that Lord Krishna’s plan can work even now.
By these two reflections, that we are our only resource and Krishna can still work through our mistakes, we can move forward.
End of transcription.
Transcription in Hindi
Transcription by: Keshavgopal das
प्रश्न – यदि हमसे कोई गंभीर गलती हो जाए तो स्वयं को क्षमा कैसे करें?
उत्तर: सर्वप्रथम, हम ये समझें कि हम स्वयं हमारे एकमात्र साधन हैं। हमारे अन्य सभी साधन इस एक साधन पर निर्भर हैं। श्रीकृष्ण भी हमारी सहायता नहीं कर सकते, यदि हम स्वयं अपनी सहायता न करें। मान लीजिए यदि आपके पास एक कार है जो प्रायः खराब हो जाती हो। यदि आपके पास यही एकमात्र कार हो और आप नई कार नहीं खरीद सकते हों तो आप हताशा में इस कार को कोसेंगे, बुरा-भला कहेंगे, लेकिन आप इस कार को क्रोध में पूर्ण रूप से मटियामेट कभी नहीं करेंगे। ऐसा करना निरी मूर्खता होगी।
इसी प्रकार, हमारा एकमात्र साधन स्वयं हम हैं। कोई अन्य साधन नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण गीता (6.5) में कहते हैं – उद्धरेदात्मनात्मानम् – अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करें, पतन नहीं करें। तो यह उद्धार हमें ही करना होगा। श्रीकृष्ण सहायता के लिए सदैव रहेंगे, किन्तु पहल हमें ही करनी होगी।
यदि हमारा कोई सहायक या कर्मचारी बार-बार गलती करता हो, तो हम क्रोधित हो सकते हैं, उसे फटकार सकते हैं। किन्तु यदि हम कर्मचारी को पीटना आरम्भ कर दें और इतना पीटें कि वो चल भी न सके तो इससे क्या लाभ होगा। स्वामी को सारे कार्य स्वयं करने पड़ेंगे। इसी तरह, यदि हम स्वयं से इतने निराश हो जाऐं कि हम सारी आशा ही छोड़ दें, तो इससे कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि हम स्वयं ही अपने लिए एकमात्र साधन हैं। हमें स्वयं ही अपने भीतर परिवर्तन के लिए पहल करनी होगी। एक बार आरम्भ करने पर श्रीकृष्ण सहायता अवश्य करेंगे।
दूसरी बात यह कि श्रीकृष्ण इतने दक्ष हैं कि हमारे भीतर अनेक दोष होने के बावजूद वे हमारे लिए मार्ग निकाल लेते हैं। श्रीकृष्ण हमारे दोषों के लिए उत्तरदायी नहीं हैं किन्तु श्रीकृष्ण के पास हमारे दोषों के बावजूद भी हमारी समस्याओं के उत्तर उपलब्ध हैं। यह भगवान की योजना में नहीं है कि हम गलतियाँ करें और न ही वे ऐसा चाहते हैं, किन्तु यदि हम गलतियाँ कर बैठते हैं तो श्रीकृष्ण कोई अन्य मार्ग द्वारा उनका समाधान हमारे लिए निकाल सकते हैं। श्रीमद्भागवत में अक्षय-पात्र की कथा आती है जिसमें दुर्वासा मुनि पाण्डवों के निवास पर भोजन के लिए पहुँचते हैं। साधारणतया घरों में, भोजन के बाद बर्तन साफ किए जाते हैं। किन्तु कुछ विशेष बर्तन जैसे चांदी या सोने के बर्तनों को बहुत सावधानी से साफ किया जाता है। तो फिर अक्षय-पात्र जैसे असाधारण बर्तन को द्रौपदी क्यों ठीक से साफ नहीं कर पाई? एक प्रकार से यह द्रौपदी की गलती है, किन्तु श्रीकृष्ण ने उस गलती का ही प्रयोग कर पाण्डवों की सहायता की। अतः हमें अपनी गलतियों के बारे में इतनी भी गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए कि हम कुछ करने के लायक ही न रहें। गलतियाँ होती हैं किन्तु हमें यह विश्वास नहीं खोना चाहिए कि श्रीकृष्ण हमारी सहायता नहीं करेंगे। भगवान की योजना हमारी गलतियों के माध्यम से भी कार्य कर सकती है।
एक अन्य उदाहरण जीपीएस का दिया जा सकता है। यदि जीपीएस हमें दाऐं ओर मुड़ने के लिए कहे किन्तु हम बाँई ओर मुड़ जाऐं, तो जीपीएस हमारा मार्गदर्शन करना बंद नहीं कर देता। जीपीएस फिर से आंकलन कर हमें एक नया मार्ग सुझाता है। इसी प्रकार भगवान भी हमारी गलतियों के बावजूद सदैव हमारा मार्गदर्शन करने के लिए तैयार रहते हैं । हमें अपना भाव सकारात्मक रखना चाहिए और आशावान बने रहना चाहिए कि श्रीकृष्ण की योजना अब भी काम कर सकती है।
अतः इन दो विचारों से – कि हम स्वयं ही अपना साधन हैं और श्रीकृष्ण अब भी हमारी गलतियों के माध्यम से हमारी सहायता कर सकते हैं – हम जीवन में गलतियों के बावजूद आगे बढ़ सकते हैं।
End of transcription.