What is the reason for shaving the head at Tirupati?
From: Mukund
Is there any scriptural basis or scriptural reference for it? Or is it started just started by someone and people are following it blindly?
Answer Podcast
Answer Podcast Hindi
Transcription by: Manju Agarwal Mataji (Muzaffarnagar)
प्रश्न: तिरुपति में जो लोग मुंडन कराते हैं उसका क्या कारण है? क्या शास्त्रों में इस प्रथा का कोई उल्लेख है या इस प्रथा को किसी ने आरम्भ किया और लोग उसका अंधाधुंध अनुसरण कर रहे हैं?
उत्तर: पुराने समय में तीर्थयात्रा करने के पीछे हेतु यह होता था कि हम अपनी भौतिक आसक्तियों को कम करें और आध्यात्म की ओर अधिक ध्यान दें। यह भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता था। उदाहरणार्थ श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध में बताया गया है कि जब नंद महाराज, यशोदा मैया और बृजवासी तीर्थयात्रा पर गए तो उन्होंने उपवास रखा, दान दिया और कुछ धार्मिक कार्य किए। साधारणतया तीर्थयात्राओं में इस प्रकार के कार्य प्रचलित होते हैं।
कलियुग में बालों के प्रति लोग बड़े आसक्त होते हैं – लावण्य केश धारणं। भागवतम् के बारहवे स्कंध में वर्णित कलियुग के लक्षणों में एक लक्षण यह भी है कि इस युग में केशविन्यास (hairstyle) को सुंदरता का प्रतीक माना जाएगा। लोग बालों को आभूषण की तरह देखेंगे। आजकल ऐसा हम प्रत्यक्ष रूप में देख भी रहे हैं। लोग अन्यों के बालों को बड़े ध्यान से देखते हैं और अपने बालों को भी उसी प्रकार बनाना चाहते हैं।
आध्यात्म की दृष्टि से यदि हम शरीर के प्रति अपनी आसक्ति कम करना चाहते हैं तो बालों को लेकर दो विकल्प सम्भव हैं – (i) उनकी तरफ ध्यान न दें, जैसे बढ़ते हैं उन्हें बढ़ने दें (ii) उनको मुंडन के द्वारा त्याग दें। हम देखते भी हैं कुछ सन्यासी अपने बालों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देते जिससे उनके बाल बड़े लंबे और गुच्छेदार हो जाते हैं।
कलियुग में, स्त्री और पुरुष दोनों में, बालों के प्रति बड़ा लगाव देखने को मिलता है। स्त्रियों के बाल तो प्राकृतिक ही लम्बे होते हैं किन्तु पुरुष भी लंबे बाल रखने में पीछे नहीं हैं। अतः वैष्णव आचार्यों ने बालों का मुंडन कराने का परामर्श दिया है। यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है। हमने देखा है कि चैतन्य महाप्रभु ने भी जब संन्यास लिया था तो अपने बालों का मुंडन कराया था। यहाँ सिद्धांत यह नहीं कि हम श्रीकृष्ण को अपने बाल समर्पित करते हैं। सिद्धांत यह है कि हम श्रीकृष्ण को बालों के प्रति अपना लगाव समर्पित करते हैं।
ऐसी कई वस्तुऐं हैं जिनसे हमें बड़ी आसक्ति होती है। ऐसी वस्तुओं का हम श्रीकृष्ण की सेवा में सीधा उपयोग कर सकते हैं। उदाहरणार्थ हमें धन से बहुत लगाव होता है जिसका उपयोग हम श्रीकृष्ण की सेवा में कर सकते हैं। किन्तु कुछ ऐसी अशुद्ध वस्तुऐं होती हैं, जैसे सिगरेट, शराब, जिनसे प्रायः हमारी आसक्ति हो जाती है पर उन्हें हम श्रीकृष्ण की सेवा में सीधे-सीधे नहीं लगा सकते। ऐसी वस्तुओं का उपभोग हमें श्रीकृष्ण से दूर ले जाता है। अतः इस प्रकार की अशुद्ध वस्तुओं को अपने जीवन से पूर्णतया त्याग करके ही हम श्रीकृष्णा की वास्तविक सेवा कर सकते हैं। बालों का त्याग इन दोनों श्रेणियों के त्याग के बीच में आता है। बाल कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे हम सीधे श्रीकृष्ण को अर्पण कर सकें। हमारे बाल जब तक शरीर से जुड़े होते हैं तब तक हमारी उनसे आसक्ति होती है, किन्तु जैसे ही हम उन्हें काटकर शरीर से अलग कर देते हैं तो हम उन्हें एक अशुद्ध वस्तु के रूप में देखने लगते हैं। भोजन के समय यदि कोई बाल हमारी दाल या चावल में गिर जाए तो हमें बड़ा खराब लगता है भले ही यह बाल हमारे प्रियजनों (पत्नी, पुत्री, पुत्रवधू) का ही क्यों न हो। अतः यह एक विचित्र आसक्ति है कि जब तक शरीर से जुड़ा है तो हम उसकी सुंदरता पर मोहित होते हैं किन्तु जैसे ही वह शरीर से अलग हो जाता है तो हम उसका तिरस्कार करते हैं।
वास्तव में बाल शरीर की एक उपज है जो अपवित्र है किन्तु उसके प्रति हमारी आसक्ति उसे मूल्यवान बनाती है। अतः बालों का काटना एक प्रकार से संकेत है कि हम अपने भौतिक लगाव का त्याग कर रहे हैं। हम अपने मन को बालों के प्रति आकर्षण से मुक्त कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, लोग अपने बालों को सजाने सँवारने के लिए दर्पण से सामने बहुत समय बिताते हैं। साथ में कँघी रखते हैं और मिनट-मिनट में बालों को संवारते रहते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यह व्यर्थ समय गँवाने जैसा है। जब लोग तीर्थयात्रा पर जाते हैं तो इस अवसर पर वे अपने बालों के प्रति आसक्ति का त्याग करते हैं ताकि समय नष्ट न हो। अतः तीर्थयात्रा के समय मुंडन कराना एक मान्य आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके पीछे उचित कारण है।
आजकल लोग इस प्रथा की समीक्षा करते हैं, आलोचना करते हैं क्योंकि तिरुपति में इसने एक व्यवसाय का रूप ले लिया है। इन कटे हुए बालों को विग निर्माताओं को बेचकर धन कमाया जाता है। इसमें अनुचित कुछ नहीं। बालों को बेचकर कमाए गए धन को यदि श्रीकृष्ण की सेवा में लगाया जाए तो उसमें क्या हानि है। साधारणतः बालों का कोई मूल्य नहीं होता किन्तु यदि विदेश में लोग उसे इंपोर्ट करना चाहते हैं और हमें उस से सेवार्थ धन की प्राप्ति होती है तो यह बुद्धिमानी ही कही जाएगी। ऐसा नहीं है कि व्यवसाय बनाने के लिए ऐसी प्रथा बनाई गई थी। यह वर्षों से चली आ रही प्रथा है। यदि ऐसा होता कि बालों के व्यवसाय के लिए ही यह प्रथा आरम्भ की गई होती तो अवश्य ही यह एक अंधश्रद्धा होती, किन्तु ऐसा नहीं है। यह व्यवसाय तो इस प्रथा का एक उपफल (byproduct) है।
पंचशास्त्र में बताया गया है कि बाल काटना एक प्रकार का शुद्धिकरण है जो हम भगवान के समक्ष जाने के पहले करते हैं। उदाहरणतया जब स्त्रियाँ भगवान के लिए भोग बनाती हैं तो वे अपने बालों को ढक कर रखती हैं ताकि उनके बाल भगवान के भोग में न गिरें। मूल रूप से बालों को अशुद्ध माना जाता है। अतः या तो उनका मुंडन कराया जाता है अथवा उन्हें सादगी से रखा जाता है ताकि हम या अन्य इनसे अनावश्यक रूप से आकर्षित न हों।
वर्तमान समय में हमारी हिंदू प्रथाऐं मात्र एक अंशकालिक (short-term) आध्यात्मिकता बनकर रह गई हैं। अधिकांश लोग तिरुपति अपनी भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं। इसी कारण यह प्रथा हो गई है कि तिरुपति जाकर अपने बालों का मुंडन करवाते हैं और बदले में भगवान से अपनी भौतिक मनोकामनाऐं पूरा करने के लिए वर माँगते हैं। वास्तव में ऐसे लोग तिरुपति स्वयं को भौतिक लगाव से मुक्त करने के लिए नहीं अपितु अपने भौतिक लगाव के कारण जाते हैं। यह आचरण बुरा भी नहीं है किन्तु श्रेष्ठ भी नहीं है।
प्रथा के पीछे सही हेतु जानने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ लोग वर्ष में एक सप्ताह के लिए भागवत सुनते हैं और शेष वर्ष भौतिकता में डूबे रहते हैं। श्रील प्रभुपाद हमें कहते हैं कि हमें प्रतिदिन भागवत का पाठ सुनना चाहिए और सदा उस पुस्तक की शिक्षाओं के सम्पर्क में रहना चाहिए। ऐसा करने पर ही हम वास्तव में हम अपने भीतर कोई बदलाव ला सकेंगे। वे यह भी चाहते थे कि स्त्री और पुरुष अपने बालों से आसक्त न हों। अतः उन्होंने पुरुषों को मुंडन कराने की अथवा सादगी से बाल रखने की तथा स्त्रियों को इस प्रकार बाल रखने का परामर्श दिया जिससे वे अनावश्यक रूप से बालों के प्रति आसक्त न हों।
सारांश में बालों के मुंडन की प्रथा हमारे भौतिक लगाव को कम करने और श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति बढ़ाने के लिए है। इस लगाव को कम करने के लिए हमें नियमित रूप से श्रीकृष्ण भक्ति में व्यस्त रहना चाहिये।
End of transcription.