When the Gita is spoken to one specific person, how can it be universal?
Answer Podcast
Transcription by: Dr Suresh Gupta (Muzaffarnagar)
Question: When the Gita is spoken to address the problem of one specific person, how can it be universal?
Answer: Gita is a conversation between Krishna and Arjuna about whether to fight the war or not. Although the context is war, but Gita also talks about universal principles that go beyond that context.
Consider an example of a doctor treating a patient along with an apprentice. Although the doctor is treating a specific case and the trainee may eventually face different type of cases in future, however the methodologies – how to examine and diagnose the patient, how to understand the symptoms, how to continue treatment based on the symptoms, how to administer the treatment, how to encourage the patient etc. – will remain the same. These are the principles that transcend the specific case and the apprentice doctor can learn these principles from the experienced doctor.
Similarly, Gita has a specific historical context. By studying Mahabharat, we can understand its context. In the Gita, after the first chapter, there are barely seven-eight references to the war. Gita largely talks about universal principles because Arjuna’s question was also universal. Had Arjuna asked, “Should I fight or not?”, Krishna would have answered, “Yes, you should fight”; then the discussion would have been over. However, Arjuna’s question was different. He asked Krishna, “I am bewildered about what is my dharma and therefore I am asking you, Oh Krishna, to please tell me, what is my dharma?” (BG2.07) Therefore, Arjuna is not asking Krishna, “Should I fight or not?” He asks Krishna, “What is dharma and specially what is my dharma?”. Gita’s discussion is answer to this question of Arjuna, which not specific but universal. Krishna’s answer is also universal and that is how Gita becomes a universal book.
Arjuna, although a warrior, does not restrict his question to a specific context. Here, Arjuna is not just a warrior who is overcome by fear and needs some courage. That is not the situation. Arjuna is actually confused about what exactly is his dharma. Sometimes, people think of dharma as religious duty, but dharma basically refers to the activity that harmonises us with the order of universe. There is orderly universe and when we act in a way by which we can come in harmony with that order, such an activity is dharma. And this principle is universal for everyone. Hence, in that sense, Gita becomes universal.
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Transcription in Hindi
प्रश्न: गीता एक व्यक्ति विशेष की समस्या को संबोधित करने के लिए बोली गई, तो हम यह कैसे कह सकते हैं कि यह हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है?
उत्तर: गीता श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच एक संवाद है जिसका उद्देश्य अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना था। यद्यपि इसका संदर्भ युद्ध है, किन्तु गीता उन सर्वव्यापी सिद्धांतों के बारे में अवगत कराती है जो युद्ध के संदर्भ से परे हैं।
एक ऐसे डॉक्टर के उदाहरण पर विचार करें जो प्रशिक्षण लेने वाले एक नौसिखिया डॉक्टर के साथ एक रोगी की चिकित्सा कर रहा है। यद्यपि चिकित्सक एक विशिष्ट रोग की चिकित्सा कर रहा है और प्रशिक्षु डॉक्टर को भविष्य में विभिन्न प्रकार के रोगियों का उपचार करना पड़ सकता है, किन्तु अनुभवी डॉक्टर की कार्यप्रणाली जैसे – रोगी की जाँच कैसे करें, उसके लक्षणों को कैसे समझें, लक्षणों के आधार पर उपचार कैसे करें, रोगी को प्रोत्साहित कैसे करें इत्यादि – समान ही रहती है। चिकित्सा के ये सर्वव्यापी सिद्धांत किसी रोगी विशेष से परे होते हैं और प्रशिक्षु डॉक्टर इन सिद्धांतों को अनुभवी डॉक्टर के मार्गदर्शन में सीख सकता है।
इसी प्रकार गीता का भी एक विशिष्ट ऐतिहासिक संदर्भ है। महाभारत के अध्ययन से हम इसके प्रसंग को समझ सकते हैं। गीता में पहले अध्याय के बाद युद्ध का उल्लेख कदिचित् सात-आठ स्थानों पर ही दिखाई पड़ता है। किन्तु मुख्यतः गीता सर्वव्यापी सिद्धांतों के बारे में ही चर्चा करती है क्योंकि अर्जुन का प्रश्न भी ऐसा ही था। यदि अर्जुन ने पूछा होता, “क्या मुझे युद्ध करना चाहिए?”, तो श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया होता, “हाँ, तुम्हें युद्ध करना चाहिए”; तो गीता की चर्चा यहीं समाप्त हो गई होती। किन्तु अर्जुन का प्रश्न भिन्न था। उसने श्रीकृष्ण से पूछा, “मैं अपने धर्म के बारे में भ्रमित हूँ, कृपया मुझे बताऐं, मेरा धर्म क्या है?” (गीता २.०७)। यहाँ, अर्जुन श्रीकृष्ण से अपनी परिस्थिति सम्बंधित प्रश्न नहीं पूछ रहा है कि “क्या मुझे युद्ध करना चाहिए या नहीं?” वह श्रीकृष्ण से एक सामान्य प्रश्न पूछता है, “धर्म क्या है, और विशेष रूप से मेरा धर्म क्या है?”। गीता की सम्पूर्ण चर्चा अर्जुन के इसी प्रश्न का उत्तर है, जो किसी विशेष परिस्थिति से बंधा नहीं है अपितु हर व्यक्ति पर लागू होता है। अर्जुन की भाँति जीवन में हम सभी यह जानना चाहते हैं कि हमारा कर्तव्य क्या है। गीता में श्रीकृष्ण का उत्तर सभी के लिए है। इस तरह गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो हर व्यक्ति के लिए है।
अर्जुन, यद्यपि एक योद्धा है, किन्तु अपने प्रश्न को किसी विशिष्ट संदर्भ तक सीमित नहीं रखता है। गीता में अर्जुन मात्र एक योद्धा नहीं है जो भय से परास्त हो गया है और जिसे थोड़े साहस की आवश्यकता है। वह स्थिति नहीं है। अर्जुन वास्तव में अपने धर्म के बारे में भ्रमित है। कई बार लोग धर्म को रीति रीवाजों से अधिक नहीं समझते, किन्तु वास्तव मेें धर्म मूल रूप से उन गतिविधियों का नाम है जिन्हें करने पर हम समूचे ब्रह्माण्ड के साथ अपना सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं। यह समूचा ब्रह्माण्ड एक व्यवस्था पर आधारित है और जब हमारे कार्य इस व्यवस्था के अनुरूप होते हैं तो ऐसी कार्यों को धर्म कहा जाता है। और यह सिद्धांत सभी के लिए सार्वभौमिक, सभी पर समान रूप से लागू होता है। अत: इस अर्थ में गीता हर किसी के लिए उपयोगी हो जाती है।
End of transcription.