When we can’t overcome our bad habits, what to do – Hindi?
Answer Podcast
लिप्यंतरण तथा संपादन: भक्त अम्बुज गुप्ता तथा केशवगोपाल दास
प्रश्न- हमारी कुछ आसक्तियाँ या बन्धन ऐसे होते हैं कि हम कई बार उनसे हार जाते हैं। कभी-कभी जीत भी जाते हैं पर फिर उनमें हार जाते हैं। कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिनमें हम आसानी से जीत जाते हैं और प्रगति करते हैं। तो अपने जिन बन्धनों के कारण हम बार-बार हार रहे हैं उनके बारे में हम क्या कर सकते हैं ?
उत्तर (संक्षिप्त) –
- भक्ति में सबसे महत्वपूर्ण भगवान से जुड़ना है। अपने बंधनों अथवा बुरी आदतों को छोड़ना भी आवश्यक है किन्तु हमें बुरी आदतों को छोड़ने की तुलना में स्वयं को भगवान से जोड़ने पर अधिक बल देना है।
- अपने दोषों के बारे में अधिक सोचते रहने से हम अपने जीवन की लड़ाईयों के आरम्भ होने से पहले ही हारने लगते हैं।
- इसके विपरीत, भगवान की भक्ति पर लगे रहने से हमें बल मिलता है और धीरे-धीरे हम अपने दोषों पर भी विजय प्राप्त करने लगते हैं।
- यदि कभी किसी प्रलोभन के कारण हम गिर भी जाते हैं तो कोई बान नहीं, पुनः उठें और भक्ति में लग जाऐं।
उत्तर (दीर्घ)- हमारे लिए एक चीज समझना बहुत आवश्यक है कि भक्ति में महत्वपूर्ण है – भगवान से सम्बध जोड़ना। हमारे जो बन्धन या आसक्तियाँ हैं उनको छोड़ना प्रधान नहीं है। वह होना चाहिए, वह सम्भव होगा भी किन्तु हमें मुख्य रूप से उस पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना है। मैंने पिछले हफ्ते भी इस विषय पर विस्तार से उत्तर दिया था। किन्तु अब यहाँ मैं उसका दूसरे दृष्टिकोण से जवाब देता हूँ।
हमें सबसे पहले यह सुनिश्चित करना है कि मुझे भगवान से सम्बन्ध जोड़ कर रखना है, चाहे कुछ भी हो जाए। हम सभी के अंदर कुछ गुण हैं और कुछ दोष हैं। कभी हम अच्छे हैं, तो कभी कमजोर। हमें अपनी कमजोरियों से सावधान अवश्य रहना है पर सदैव उसी बारे में ही सोचते नहीं रहना है। “मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ” इस प्रकार सोचते रहने के स्थान पर हमें भगवान के बारे में सोचना चाहिए। अपने दोषों के बारे में सोचने की बजाय हमें भगवान के बारे में सोचना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि मैं जैसा भी हूँ मैं भगवान की सेवा कर सकता हूँ। मैं भगवान की सेवा कैसे कर सकता हूँ इस बात पर हमें अधिक बल देना है।
जब हम अपने दोषों के बारे में अधिक सोचते हैं तो जीवन में अपनी लड़ाईयों के शुरु होने से पहले ही हार मानने लगते हैं। कुछ लड़ाईयाँ ऐसी हो सकती हैं जिनमें हमें जीतना नामुमकिन लगता है। हम ऐसा फैसला भी कर सकते हैं कि यह युद्ध लड़ना ही नहीं। कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि जो हमारे दोष हैं उनको मैं दूर करने का प्रयास नहीं करूँगा। वो भाव नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि मैं अपने दोषों के बारे में ज्यादा विचार नहीं करूँगा। मैं इस बात पर अधिक ध्यान दूँगा कि मैं भगवान से कैसे जुड़ सकता हूँ और उनकी सेवा अलग-अलग ढंग से कैसे कर सकता हूँ। मेरे मन को सकारात्मक कार्यों में कैसे लगा सकता हूँ। तो इस प्रकार जब हम सकारात्मक कार्यों में लग जाते हैं तो नकारात्मक कार्यों को छोड़ना आसान हो जाता है।
मान लीजिए एक योद्धा रण में युद्ध कर रहा है और किसीने उसपर तलवार से वार किया और उसे जख्मी कर दिया। वह योद्धा अगली बार यदि यह संकल्प करे कि मैं इसके बाद भविष्य में कभी भी तलवार के प्रहार से जख्मी नहीं होउँगा तो क्या ऐसा संकल्प करना सम्भव है? आक्रमण तो कहीं से भी हो सकता है। इसके विपरीत यदि वह ऐसी योजना बनाए कि मैं स्वयं के संरक्षण के लिए और सक्षम बनूँगा, सतर्क बनूँगा, कुशल बनूँगा, शस्त्रो में और निपुणता प्राप्त करूँगा, तो ऐसा करने से वह तलवार के प्रहार से बचने में अधिक सक्षम होगा और अन्य प्रकार के प्रहारों से भी बच सकता है। अगर उसकी चेतना यही रहती है कि अरे मैं तलवार से पिछली बार जख्मी हो गया था और मुझे तलवार से बचना है तो वह आगे नहीं बढ़ पाएगा।
कोई भी योद्धा रणभूमी में तलवार से बचने के लिए नहीं जाता है। यदि तलवार से बचना है तो रणभूमि में जाने की जरूरत नहीं है। घर पर ही रहो, तभी तलवार से पूरी तरह से बच पाओगे। रणभूमि में जाने का उद्देश्य तलवार से बचना नहीं है। रणभूमि में जाने का उद्देश्य युद्ध करना है और युद्ध करने में हम जितना अधिक सक्षम बनेंगे, तलवार से बचने में भी सक्षम हो जाऐंगे।
कुछ ऐसी बद्धअवस्थाऐं या आदतें ऐसी होती हैं जिनमें हम बार-बार हार जाते हैं, जख्मी हो जाते हैं। ऐसे में हमें उस बारे में बार-बार सोचना नहीं है। हमें उसके बारे में विचार नहीं करना। हमें इस बारे में अधिक ध्यान देना है कि हम भगवान की सेवा कैसे कर सकते हैं। यदि हम ऐसा सोचते हैं और भगवान की सेवा में लग जाते हैं तो फिर भले ही उस बद्धावस्था के कारण थोड़ा गिर भी जाते हैं, कुछ समस्या आ भी जाती है, तो फिर से उठ जाओ और फिर से कार्य में लग जाओ।
Defeat in the battle against temptation is not defeat in the war for devotion
ये दोनों अलग चीजे हैं। हम भक्ति प्राप्त करने के लिए युद्ध कर रहे हैं। एक युद्ध में कई लड़ाईयाँ होती हैं। किसी प्रलोभन की लड़ाई में हम भले ही हार जाएँ उस एक हार से हमारे भक्ति के लिए युद्ध में हार-जीत का फैसला नहीं होता है। भक्ति का युद्ध बहुत बड़ा है और भक्ति के युद्ध में हमें युद्ध करते रहना है। उस युद्ध में यदि हम युद्ध करते रहेंगे तो भले ही किसी प्रलोभन की लड़ाई में हम हार गए हों, कई लड़ाईयों में भी यदि हम हार गए हों, फिर भी भक्ति के लिए युद्ध में अग्रसर बने रह सकते हैं। भक्ति के युद्ध में अग्रसर रहने से क्या होगा कि हम और शक्तिशाली बन जाएँगे, हम और सुदृढ़ बन जाएँगें। यदि प्रलोभनों की लड़ाई में हार के कारण यदि हम हताश हो जाते हैं तो हताशा के कारण हम भक्ति का युद्ध भी नहीं करेंगे। तो मान लीजिए यदि मैं ऐसा करने वाला नहीं था, किन्तु अभी ऐसा हो गया। हम भले ही एक लड़ाई में हार गए हों फिर भी हमें भगवान की भक्ति में अग्रसर रहना है। भगवान की भक्ति में अग्रसर रहते हैं तो धीरे-धीरे उस लड़ाई में जीतने के लिए भी हम सक्षम हो जाएँगे।
कुछ लड़ाईयाँ ऐसी हो सकती हैं जिनको जीतने में काफी समय लग सकता है। अलग-अलग लोगों की अलग-अलग कमजोरियाँ हो सकती हैं। कुछ आदतें हो सकती हैं जिन्हें छोड़ना बड़ा मुश्किल हो सकता है। ठीक है वह आदत तो छोड़ नहीं पाए, पर भक्ति में छोड़ने से अधिक महत्वपूर्ण जोड़ना है। हमें भगवान से अपने को जोड़ना है। उसके लिए कुछ चीजें छोड़नी जरूरी हैं पर वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण है अपने को भगवान से जोड़ना। यदि हम भगवान से जुड़ जाते हैं तो धीरे-धीरे वे चीजें भी छूट जाऐंगी। इसलिए हमें छोड़ने पर जोर नहीं देना है, जोड़ने पर जोर देना है। इस तरह से हम जीवन में अग्रसर बने रह सकते हैं।