Why do scriptures urge women to do vat-savitri puja to get the same husband for seven lives when the goal of life is to attain liberation?
From: Mukund
If ultimate aim of the human life is to get liberation from cycle of birth and death then why do scriptures recommend women to perform “Vat Savitri” puja to get same husband for Seven lifes (Saat Janam)? Is this practice at all mentioned in scriptures?
Transcription: ( By Bhavesh P)
Answer: The scriptures talk about multiple levels of spirituality. And within karma kanda, which is an important part of the scriptures as vast majority of the scriptures talks about karma kanda although it is not the conclusion of the scriptures. Within that the idea is material enjoyment is ultimately the goal of life and the purpose of dharma is to help us get better material enjoyment. So within the karma kanda sections, it is mentioned that our worldly relationships can be perpetuated at the material level not by avoiding death but by replicating those relationships in future lives. That’s how the problem of death which sabotages all material enjoyments is attempted to be circumvented in karma kanda and as a part of karma kanda there are these sort of rituals where the material relationships are prayed and their worship is done. Prayers and worships are done to perpetuate the material relationships for many many life times.
Now if we go beyond karma kanda to gyan kanda, there we have the idea that all the relationships are false. And one should just cut off the bonds of these relationships and move forward to go on towards spiritual life and attain moksha. Beyond that if we come further to bhakti, things become little more complex. Bhakti in and of itself does not reject material relationships but it spiritualize those relationships. That’s why in the seventh canto of Srimad Bhagvatam, chapter fourteen talks about ideal family life. In that chapter, it is mentioned that if the wife assists the husband in performing devotional service and both of them render devotional service together then that devotional connection can be continued not just in the next life in swarga but it can be perpetuated in the spiritual world eternally.
The idea here is primarily that we don’t reject the material relationships, we spiritualize them. But at the same time the focus is not on spiritualizing the relationship, the focus is on spirituality, focus is on Krishna. And once we are centered in Krishna then we can spiritualize the relationship concomitantly. Yes these kind of things are there in scriptures but devotees who aspire not just for moksha but beyond moksha to reside in spiritual world where there are eternal relationship centered with Krishna. In the practice of devotional service in this world we try to replicate a similar Krishna centered reality in our home and we try to make all our relationships Krishna centric. Hence we may not at a material level aspire for perpetuating the relationships but we can aspire to focus on serving Krishna and dovetailing all our relationships in that way. That’s how we can spiritualize our relationships and all our relationships can help us move closer to Krishna.
Thank you
Transcription in Hindi
प्रश्न – यदि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य जन्म और मृत्यु के चक्र से निकलना है तो फिर शास्त्र स्त्रियों को वट सावित्री पूजा, अर्थात सात जन्मों तक वही पति पाने की पूजा, करने का सुझाव क्यों देता है? क्या ऐसी प्रथा का शास्त्रों में उल्लेख है?
उत्तर – शास्त्रों में आध्यात्म के अलग-अलग स्तरों का वर्णन है। इसमें एक स्तर है कर्मकाण्ड। यद्यपि कर्मकाण्ड शास्त्रों का निष्कर्ष नहीं है किन्तु शास्त्रों का एक बड़ा भाग कर्मकाण्ड के विधि विधानों का वर्णन करता है। कर्मकाण्ड के अन्तर्गत भौतिक सुख की प्राप्ति ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। इसमें व्यक्ति यह मानता है कि धर्म का एकमात्र उद्देश्य है जीवन में अच्छे से अच्छा भौतिक सुख प्राप्त करना।
कर्मकाण्ड के ही किसी एक भाग में ऐसा बताया गया है कि हम अपने भौतिक सम्बन्धों को कई जन्मों तक आगे ले जा सकते हैं। ऐसा मृत्यु को टाल कर नहीं किन्तु अगले जन्म में एक बार फिर से उसी सम्बन्ध को पुनः दोहरा कर किया जा सकता है। मृत्यु के कारण जब समस्त भौतिक भोग विलास समाप्त हो जाता है तो कर्मकाण्ड के रीति रिवाजों का पालन करके इस समस्या का हल किया जाता है। इन रीति रिवाजों के अन्तर्गत पूजा अर्चना की जाती है जिससे कई जन्मों तक वही भौतिक सम्बन्ध बना रहता है।
यदि हम कर्मकाण्ड से आगे बढ़कर शास्त्रों में दिए ज्ञान काण्ड विभाग की ओर चले तो वहाँ धारणा ऐसी होती है कि सभी सम्बन्ध मिथ्या हैं, इनमें कुछ नहीं रखा और अंततः इन सम्बन्धों को त्यागकर हमें आध्यात्मिक जीवन अपनाना चाहिए तथा मोक्ष की प्राप्ति करनी चाहिए।
ज्ञान काण्ड से आगे बढ़कर यदि हम भक्ति काण्ड की ओर जाऐं तो वहाँ धारणा में फिर बदलाव होता है। भक्ति काण्ड में भौतिक सम्बन्धों के त्याग नहीं किन्तु सम्बन्धों का आध्यात्मिकरण करने की सलाह दी गई है।
श्रीमद्भागवतम् (एक भक्ति शास्त्र) के सातवें स्कंध के चौहदवें अध्याय में आदर्श गृहस्थ जीवन का वर्णन मिलता है। वहाँ ऐसा उल्लेख किया गया है कि यदि पत्नी पति की कृष्णभक्ति करने में सहायक बनती है और दोनों साथ मिलकर कृष्णभक्ति करते हैं तो उनका यह सम्बन्ध न केवल स्वर्ग तक किन्तु भगवान के आध्यात्मिक धाम गोलोक वृन्दावन तक शाश्वत बना रहता है।
अतः भक्ति काण्ड में धारणा यह है कि भौतिक सम्बन्धों को नकारना नहीं किन्तु उन्हें स्वीकार करना है तथा उन्हें आध्यात्मिक बनाना है। ऐसा करने में हमारा लक्ष्य वास्तव में सम्बन्धों को आध्यात्मिक बनाना नहीं किन्तु अपने पूरे जीवन को ही कृष्णभक्ति के लिए समर्पित करना है। ऐसा समर्पण करने पर हमारे सम्बन्ध स्वतः ही आध्यात्मिक बन जाऐंगे।
वट सावित्री जैसे कर्मकाण्डी विधि विधानों का उल्लेख शास्त्रों में अवश्य है किन्तु भक्तगण इन सबमें नहीं पड़ते। वे न केवल मोक्ष किन्तु मोक्ष से भी आगे आध्यात्मिक जगत में भगवान श्रीकृष्ण के साथ अपने शाश्वत सम्बन्ध के बारे में ही विचार करते हैं। भक्तगण अपने वर्तमान जीवन में ही गृहस्थ में रहते हुए परस्पर वैसे ही आध्यात्मिक सम्बन्ध बनाने की प्रतिक्रिया आरम्भ कर देते हैं जिनका केन्द्र श्रीकृष्ण ही होते हैं।
End of transcription.