Why does Ayurveda prescribe medicines with non-veg ingredients when meat is forbidden in Vedic culture?
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Transcription: Neelam Kuldeep Mohan Mataji (Muzaffarnagar)
प्रश्न: जब वैदिक संस्कृति में माँसाहार वर्जित है तब कभी-कभी आयुर्वेदिक दवाइयों में मांसाहार घटकों का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर: सर्वप्रथम वैदिक संस्कृति में माँसाहार वर्जित नहीं है। कुछ विशेष परिस्थितियों में उन्हें लेने की छूट दी गई है किन्तु जो लोग आध्यात्म की खोज में हैं, उनके लिए माँसाहार विशेषतः वर्जित है।
जहां तक आयुर्वेद का प्रश्न है, ज्ञान की इस शाखा का उद्देश्य आध्यात्मिक नहीं है। इसका सम्बंध चिकित्सा से है और इसका उद्देश्य भौतिक है। तकनीकी दृष्टिकोण से आयुर्वेद एक उपवेद है, अर्थात वेदों के अधीन। इस मायने में उसका वेदों से कुछ सम्बंध अवश्य है। चरक संहिता में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आयुर्वेद और उसके सिद्धांत उन लोगों पर लागू नहीं होते हैं जिनका लक्ष्य आध्यात्म हो।
वैदिक संस्कृति में जहाँ भौतिक स्तर पर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की बात की जाती है, ठीक वैसे ही आयुर्वेद स्वास्थ्य सम्बंधित सिद्धांतों के बारे में बताता है। इन सिद्धांतों के अंतर्गत आता है रोगों की रोकथाम तथा औषधियों द्वारा चिकित्सा। आयुर्वेद का केंद्र बिंदु लोगों का भौतिक जीवन होता है। आयुर्वेद नास्तिक दर्शन पर आधारित नहीं है। इसमें आत्मा और भगवान का उल्लेख है, किन्तु ऐसे विषय उसका केंद्र बिंदु नहीं है। आयुर्वेद का यह उद्देश्य नहीं है कि वह लोगों को आत्मज्ञान कराए।
अतः जिनका लक्ष्य आध्यात्मिक है, उन्हें यह समझना चाहिए कि आयुर्वेद के सिद्धांत आध्यात्म के सिद्धांतों के अधीन होने चाहिए। आयुर्वेद के सिद्धांतों को आध्यात्म के सिद्धांत से स्वतंत्र और उच्च नहीं समझना चाहिए। भगवद्गीता 15.15 में कृष्ण बताते हैं- ‘वैदेश्च सर्वैरहमेव वेद्यो’- सभी वेदों का ज्ञान मुझ पर आकर समाप्त होता है। अंततः आयुर्वेद का उद्देश्य भी हमें कृष्ण की ओर ले जाना है। वैदिक शास्त्रों में, ऊंचे और निचले, दोनों स्तरों के सिद्धांत बताए जाते हैं।
आयुर्वेदिक सिद्धांत काफी हद तक सात्विक हैं, लेकिन उनका उपयोग दोनों प्रकार के लोग कर सकते हैं, जो सत्व से ऊपर हैं और जो सत्व के नीचे हैं। जो लोग सतोगुणी नहीं है, यानी रजो और तमोगुणी हैं, वे लोग सम्भवतः माँसाहार करते हों और ऐसे लोग ऐसी दवाइयां भी ले सकते हैं जिनमें माँसाहारी घटक हों। आयुर्वेद में माँसाहारी दवाइयों को लेने की अनुमति है। अब यदि हम किसी परम्परागत आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास जाऐं जिनका आध्यात्म की ओर रूझान है तो वे माँसाहारी दवाइयों के शाकाहारी विकल्प भी हमें अवश्य बताएंगे। यदि हम किसी व्यावसायिक दृष्टिकोण वाले आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास जाऐं जिसका आध्यात्म की ओर रूझान नहीं है तो वे देखेंगे कि क्या उपलब्ध है, क्या सस्ता है, क्या सुविधाजनक है और वे शाकाहारी तथा माँसाहारी दवाइयों में अधिक भेद नहीं करेंगे। ऐसे व्यवसायिक दृष्टिकोण रखने वाले चिकित्सकों के साथ बात करने पर हमें सम्भवतः ऐसा प्रतीत हो कि आयुर्वेद में अकसर माँसाहारी दवाइयाँ दी जाती हैं। किन्तु ऐसा नहीं है कि आयुर्वेद में अकसर माँसाहारी दवाइयाँ दी जाती हैं। अधिकतर दवाइयाँ माँसाहारी नहीं होती और शाकाहारी विकल्पों के बारे में आग्रह करने पर ऐसे विकल्पों के बारे में जाना जा सकता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि आयुर्वेद में दोनों प्रकार के विकल्प क्यों हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आयुर्वेद न केवल ऐसे लोगों के लिए है जिनका लक्ष्य आध्यात्मिक है अपितु साधारण समुदाय के लिए भी है जिनका लक्ष्य आध्यात्मिक नहीं है। जिनका लक्ष्य आध्यात्मिक है उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि आयुर्वेद के सिद्धांत आध्यात्मिक सिद्धांतों के अधीन हैं, उनसे परे नहीं।
End of transcription.