Why should one not go to the temple after there is a death in the family? Can we chant on Tulasi beads in a crematorium?
Transcription in Hindi
प्रश्न – ऐसा क्यों कहा जाता है कि परिवार में किसी की मृत्यु के पश्चात मंदिर नहीं जाना चाहिए? किसी की मृत्यु के पश्चात क्या हम शमशान के भीतर तुलसी माला पर जप कर सकते हैं?
उत्तर – सामान्यतः नियम यह है कि शमशान से लौटने के बाद अर्चाविग्रहों की पूजा नहीं करनी चाहिए। शमशान ऐसा स्थान है जहाँ जाने पर व्यक्ति भौतिक तथा भावनात्मक दोनों दृष्टिकोणों से अशुद्ध हो जाता है। भौतिक अशुद्धि इसलिए कि जैसे ही आत्मा शरीर छोड़ती है तो तुरंत ही शरीर में अशुद्धि आरम्भ होने लगती है और यदि शरीर को संरक्षित नहीं किया जाए तो दुर्गंध आना एवं सड़ना आरम्भ हो जाता है। भावनात्मक अशुद्धि इसलिए क्योंकि मृत्यु के समय दुख एवं आघात के कारण हम भावनात्मक रूप से अशुद्ध हो जाते हैं। अर्चाविग्रहों की पूजा-अर्चना के समय हमें शारीरिक रूप से स्वच्छ और भावनात्मक रूप से एकाग्र एवं सचेत होना चाहिए ताकि हम भगवान की सर्वोत्तम सेवा कर सकें।
अर्चाविग्रहों की पूजा का निषेध, यह नियम भागवत विधि के विरुद्ध नहीं है। भागवत विधि के अन्तर्गत श्रवण एवं कीर्तन और पांचरात्रिक विधि में अर्चाविग्रहों की पूजा-अर्चना का विधान है। अतः सामान्यतः परिवार में मृत्यु होने पर हमें स्वयं अर्चाविग्रहों की पूजा-अर्चना नहीं करनी चाहिए। किन्तु यदि किसी ने अपने घर पर अर्चाविग्रह स्थापित किए हों और किसी अन्य द्वारा अर्चाविग्रहों की पूजा का विकल्प उपलब्ध न हो तब हमें घर पर अर्चाविग्रहों की पूजा अर्चना बंद नहीं करनी चाहिए। ऐसे में भगवान की सेवा चलती रहनी चाहिए। किन्तु यदि कोई मंदिर में विग्रहों की सेवा करता हो तो सामान्यतः उसे ऐसी परिस्थिति में यह सेवा नहीं करना चाहिए।
किसी की मृत्यु पर मंदिर नहीं जाना, कर्मकाण्ड परम्परा में बहुत कड़ा नियम समझा जाता है। किन्तु भक्त समुदायों में यह नियम इतना कठोर नहीं है। कभी-कभी स्थानीय परम्पराओं का सम्मान करने के कारण ऐसा हो सकता है कि भक्त कुछ दिनों के लिए मन्दिर न जाएँ, परन्तु महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि कृष्णभक्ति का अभ्यास उत्साहपूर्वक चलता रहे। यहाँ उत्साहपूर्वक का अर्थ यह नहीं कि हम कृत्रिम रूप से सकारात्मक एवं प्रसन्न दिखाई दें। परिवार में मृत्यु के पश्चात यह स्वाभाविक है कि हम शोकाकुल होंगे।
किसी प्रियजन की मृत्यु हमें यह सोचने पर विवश करती है कि यह भौतिक अस्तित्व क्षणिक एवं अनित्य है। यह अनुभव स्मरण कराता है कि हम अपने आध्यात्मिक जीवन के बारे में पूरी तरह गम्भीर एवं तत्पर बनें। श्रीमद्भागवतम् में हम देखते हैं कि जब परीक्षित महाराज की मृत्यु होने वाली थी तब उन्होंने अर्चाविग्रहों की पूजा नहीं की थी किन्तु भगवान की कथाओं के श्रवण एवं कीर्तन पर अपना ध्यान केंद्रित किया था। इसी प्रकार हम भी परिवार में किसी प्रियजन की मृत्यु पर श्रवण एवं कीर्तन द्वारा श्रीकृष्ण की शरण ले सकते हैं। ऐसी भी परम्परा है कि ऐसे अवसर पर दिवंगत व्यक्ति की स्मृति में उसके सम्बन्धियों द्वारा श्रीमद्भागवत सप्ताह अथवा भागवत कथा का आयोजन करवाया जाता है। ऐसे अवसर पर भगवान की कथाओं का श्रवण हमें शास्त्रचक्षु तथा भीतरी सांत्वना प्रदान करता है। यह ज्ञान एवं अनुभूति न केवल हमारे शोक को कम करने में किन्तु उससे ऊपर उठने में भी हमारी सहायता करते हैं।
जहाँ तक तुलसी माला का सम्बन्ध है यह अशुद्ध नहीं होती, पवित्र ही रहती है। शमशान में प्रवेश करने पर तुलसी माला को बाहर छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। वापस लौटने पर आप माला की थैली को धो सकते हैं। यदि चाहें तो गोमूत्र अथवा गंगाजल तुलसी की माला पर छिड़क सकते हैं। किंतु सामान्यतः तुलसी माला को पवित्र समझा जाता है और शमशान ले जाने पर अशुद्ध नहीं होती।
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